हां पुनः जन्म होता है। बिल्कुल होता है। चौरासी लाख योनियों में से मनुष्य योनि अंतिम योनि होती है। और फिर इसके बाद चौरासी का फिर से नया चक्र शुरू होता है। मनुष्य योनि से जन्म लेने के बाद जो विवेक और वैराग्य को प्राप्त होते हैं, केवल वे ही मुक्त होते हैं। बाकियों का पुनः जन्म होता है। और फिर आगे चलकर अलग-अलग योनियों में भी हो सकता है।

मनुष्य शरीर पाना बहुत भाग्यशाली होना है। यह हमे मुक्ति दिला सकता है। मनुष्य शरीर वह साधन है, जिससे जन्म-मृत्यु के पार जाया जा सकता है, इस पुनः जन्म-मृत्यु की चक्र से छूटा जा सकता है, लेकिन बहुत कम यानी हजारों में से एक दो लोग ही इससे छूट पाते हैं, बाकी सब पुनः जन्म को प्राप्त होते हैं।

माया मे बहुत ताकत हैं, वह आकर्षित करतीं हैं। माया से छूटना बड़ा ही मुश्किल। प्रकृति माया है। स्त्री शरीर माया है। हमारे शरीर सहित जो भी दृश्य है सब माया है। ब्रह्म इससे पार है।

एक अदृश्य शक्ति है। जो सृष्टि रुपी माया का, हम सबके होने का आधार है। विवेक जागृती करके हमे उसे जानना पहचानना होता है। और फिर उसमें समाना होता है। माया मे संपूर्ण विस्मृती और निराकार चेतन ब्रह्म में लय होकर रहना हमे मुक्ति दिलाता है।

जन्म मृत्यु से मुक्ति पाना कहने जीतना आसान काम नहीं है। जीस स्त्री प्रकृति से तुम आएं हों, यह चलतीं फिरतीं माया है। स्त्री शक्ति का, माया का रुप है। संत रामदास जी स्त्री का त्याग करके भागे, वे ऐसे ही नहीं भागे। उसके पिछे विवेक है। जीनको मोक्ष चाहिए उनका स्त्री से दूर रहना ही अच्छा है।

स्त्री साक्षात शक्ति है, सम्मान के पूजा के योग्य है, भोग के नहीं। यह मातृशक्ति है। बड़े बड़े साधूं संन्यासी विवेकी वैरागी स्री की पूजा करते हैं, उनकी महिमा गाते है। लेकिन भोग से दूर रहते हैं। क्योंकि वह बहुत शक्तिशाली माया है, उसी से चौरासी का फेरा फिर से शुरू होता है।

जब-तक स्री शरीर से आकर्षिण रहेगा। जब-तक दृश्य से प्रेम रहेगा जन्म मृत्यु तो होती रहेगी।

इसपर मैं ज्यादा नहीं बोलूंगा। इसपर मेरे ज्यादा बोलने से किसी के दिल को ठेस पहुंच सकती है। इस प्रश्न का विस्तार से उत्तर जानने के लिए कृपया अवधूत गीता पढ़ें या सुने।
धन्यवाद।

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