
जी बिल्कुल यह सत्य है।
मनुष्य अध्यात्म को साथ में लेकर जन्मता है, वह मानें या न माने हर मनुष्य जन्म से ही अध्यात्मिक होता है। लेकिन जानता नहीं है। बाद में जैसे जिसके संस्कार है, वैसे कोई कोई जान जाता है, अपने उस स्व-स्वरुप को जानने के लिए प्रयास करता है।
अध्यात्मिक होने का अर्थ आत्मा का ज्ञान संपादन करने से है। अध्यात्मिक होने का अर्थ हम कहा से आएं हैं और हमे आगे कहा जाना है कि खोज से है। अध्यात्मिक होने का अर्थ अपने ही भीतर जो शांतस्वरुप, परम आनन्दस्वरुप, सदा से स्थिर, सर्व साक्षी बैठा है, उसकी खोज करने की यात्रा से है।
यह स्वयं को जानने की यात्रा है, अपने ही भीतर मुड़ने की यात्रा है, सदगुरु के मार्ग पर चलने की यात्रा है, न की किसी बाह्य अवडंबरो की। उपरी उपरी चीजें जैसे केवल रोज़ रोज़ मंदिर जाना, बहुत ज्यादा पूजा पाठ करना, मुर्तियो के सामने गिड़गिड़ाना अध्यात्मिकता नहीं होती। यह बस अध्यात्मिक प्रक्रिया की शुरुआत होती है, आत्मा के उपर अच्छे संस्कार करने के लिए अच्छा है।

सच्चा अध्यात्मिक अवधूतों के जैसा, भीतर से जागरुक होता है, यह अध्यात्मिकता अच्छी है।
व्यक्ती ज्बाहर से भला कैसा भी हो, भीतर से जागा हुआ होना चाहिएं। फिर वह जो भी करता है, हंसता है, बोलता है, चालता है, रिश्ते निभाता है, कोई व्यवहार करता है, फिर पूरे होशो-हवास में करता है और ऐसे लोग समाज में बहुत अच्छे होते हैं। यह स्वय़ का कल्यान करतें हैं, अपने साथ दूसरे अनेकों के लिए एक अच्छा आदर्श स्थापित करते हैं। इनसे समाज का फायदा ही फायदा होता है, नुकसान कुछ नहीं होता।
ऐसे लोग किसी से इर्ष्या नहीं करते। यह सभी विकारों से दूर सहज, सरल, शांत होते हैं। इनका स्वभाव दयालु होता हैं। यह अपने स्वयं से जुड़े हुए होने से, खुद में ही उलझे हुए होने से इनकी वजह से या इनके अस्तित्व से किसी को कोई भी तकलीफ़ या हानी नहीं होती। यह अच्छा है ना, समाज में हमें ऐसे ही लोग चाहिए।

अध्यात्म भीतर से है, विचार आचार से बदलना है, विवेक मे जीना है, यह आत्मा की यात्रा है। अपने स्वयं को जानने की सृष्टि का जो आधार है, हमारा अपना जो आधार है, उसको जानने की यात्रा होती है।
दुर्गुणों को त्यागकर सद्गुणों को अपनना है, संयमित जीवन जीना है, वास्तविकता में जागना है। भीतर के रागद्वेषो को मिटाना है। अंनत जन्मों से जो यातनाएं सही है, उससे मुक्ति पाने का प्रयास करना है, और यही है सच्ची अध्यात्मिकता।
अध्यात्मिक होना अच्छा है, क्योंकि जिस काम के लिए हम आएं हैं, और वही कार्य हम कर रहे हैं। स्वयं को मुक्त करने का हमारा जो पहला कर्तव्य है, उसे ही हम निभा रहे हैं। यह बहुत अच्छा है।
परमात्मा ने हमें जिस कार्य के हमे भेजा, उस कार्य को करना अच्छा ही है न।
धन्यवाद।