सत्संगति से लाभ
संसार की हाट में जब दोनो प्रकार का सौदा बिकाऊ है, एक ओर शरीर के सुख-आराम, धन-आराम, धन-पदार्थ, माल-मिल्कियत और दूसरी ओर मालिक की “भक्ति”। अब यह विचार इन्सान को तब मिले जब सत्पुरुषों की संगति ग्रहण करे कि कौन सी चीज सुख देने वाली और साथ जानेवाली है।। जब यह विचार आये तब खरीदार बने।। सन्तों की संगति के बिना ऐसा ज्ञान नहीं हो सकता। उनकी संगति से ऐसे विचार मिलते हैं और दिल मे भक्ति की प्राप्ति की उमंग उत्पन्न होती है अर्थात भक्तिबजो सुखदायी, साथ जानेवाली है, वह मिल सकती है।
दुनिया के बाजार में भक्ति के गुण श्रद्धा, प्रेम, विश्वास- ये भी।मिलते हैं और दुनिया के पदार्थ भी।। मालिक की भक्ति भगवान से मिलाने वाली है। जब मालिक मिल गए तो माल मिल्कियत सब अपने आप बन गए, फिर किस चीज की कमी रह गयी।। जैसे कि लिखा है —
जिमि सरिता साग़र महुँ जाहिं।
जद्यपि ताहि कामना नाहीं
तिमिबसुख सम्पति बिनहिं बोलाएँ।
धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।
नाम जिसके ह्रदय में बसता
वही सच्चा धनवान है।
मनन करे जो वचनों पर वह
ही परम विद्वान है।।
हित्त चित्त से करे चाकरी
सो ही पुरुष प्रधान है।
सजदे में उसके आ झुकता
सारा कुल जहान है।।
कुर्बानी किये बिना सफलता कदाचित नहीं मिल सकती।आत्मिक शक्ति की प्राप्ति के लिए कम खाना, कम बोलना और कम सोना आवश्यक है।।
मन को इन्द्रिय विषय-विकारों की ओर से रोककर सुमिरण और सेवा में निरन्तर लगाओगे तो उस पुरुषार्थ का फल आत्मिक लाभ होगा।।
बहुत लोग बातें तो ऐसे करते हैं कि जैसे प्रभु की प्रसन्न्ता प्राप्त की हो परन्तु उनके कर्म देखें तो प्रभु की महिमा भी केवल मायावी पदार्थों की प्राप्ति के लिए करते हैं, ऐसे लोगों को भक्त या बुद्धिमान नहीं कहा जा सकता।।
सुमिरण में महान शक्ति है। जैसे लोहा लोहे से काटा जाता है, इसी प्रकार नाम के सुमिरण से अन्य सभी मायावी विचारों को काट दो।।
शालिनी साही
सेल्फ अवेकनिंग मिशन