मोक्ष अर्थात् जीवन–मरण से मुक्त हो जाना। मोक्ष प्राप्ति का अर्थ है कि परमात्मा से अलग हुआ जीव फिर अपने उसी परमात्मा स्वरूप में लीन हो जाता है। जब तक जीव अपने आप को जान नही लेता उसे मुक्ति नही मिलती। और उसे चौरासी लाख योनियों में भटकते रहना पड़ता है। बार–बार जीव जन्म लेता है, संसार के सुख और दुख भोगता है, फिर मरने का डर और दुख उसे ग्रसित कर लेता है। इसी प्रकार बार–बार वह कष्टों में पड़ा रहता है। वह जो भी अच्छे बुरे कर्म करता है, उसके अच्छे या बुरे परिणाम उसे भोगना ही पड़ता है। यही कर्म का सिद्धांत है और इसी कर्मबंधनका निपटारा करने वह बार–बार जन्म लेता है। जब तक उसके सभी कर्मबंधन कट नही जाते उसे मोक्ष नहीं मिल सकता।

इसलिए मोह, माया, लालच, आसक्ति, अहंकार, वासनाएं और इच्छाएं उसे बार·बार चौरासी के चक्कर में घसीट लाती हैं। और एक मात्र मनुष्य जन्म उसे मुक्ति पाने के लिए सुअवसर के रूप में प्राप्त होता है। मोक्ष प्राप्ति के बाद कोई कर्मबंधनं नही बचता, हां बुद्धत्व को प्राप्त जीव फिर स्वेच्छा से संसार में जगत कल्याण के लिए आना चाहे तो उसकी मर्जी है, वह कभी भी आ सकते हैं। वो परमात्मा का ही रूप हो जाते हैं, उन पर कोई बंधन या नियम लागू नही होते।

और इसे ही बुद्ध ने निर्वाण प्राप्ति कहा है, निर्वाण अर्थात् दिए का बुझ जाना। दिया अर्थात् जीव का अस्तित्व समाप्त हो जाता है और वह परम प्रकाश में लीन हो जाता है। अपनी क्षुद्रता मिटा वह अनंत के साथ एकाकार हो जाता है। उसके लिए फिर कोई दो नही होते, सब अद्वैत हो जाता है।

इसे पाने ही समस्त जीव संघर्ष कर रहे हैं, सबका अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति ही है। इसके लिए मनुष्य जन्म मिला है उसके लिए परमात्मा को धन्यवाद दें और प्रार्थना करें की उसके उद्धार का रास्ता खोलें। जीव अपने अहंकार को मिटा कर ही परमात्मा को पा सकता है। जीव को अपने समस्त विकारों पर विजय पाना होगा तभी वह पात्र बन पाएगा। बिना खुद को तपाए, मिटाए आप परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। खुद के कल्याण के साथ औरों के कल्याण का भी सोचें।

सबसे जरूरी है सच्चे आत्मज्ञानी गुरु की शरण में जाकर अपने आप को उनके चरणों में समर्पित कर देना चाहिए। और उनके बताए नियमों पर ही चलना चाहिए। अपने कर्मबंधनों से मुक्त होने का प्रयास करना चाहिए और साथ ही नए कर्मबंधन बनाने से बचना चाहिए। इसके अलावा ज्ञान, वैराग्य, भक्ति और प्रेम और सेवा, गुरु नाम के जाप सभी ऐसे साधन हैं जिससे मुक्ति का रास्ता खुलता है। अतः जीव को मनुष्य जन्म सफल करके मुक्ति के सभी प्रयास करने चाहिए और अपने सभी कर्म परमात्मा को समर्पित कर देना चाहिए। इस तरह से हम मुक्ति या निर्वाण या मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं।

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