किसी प्राणी के जीवनकाल के दौरान एकत्रित कर्म का संचय अगले अवतार में मृत्यु के बाद भी उसके साथ जारी रहता है और यह निर्धारित करता है कि वे किस जीवन में जन्म लेंगे। मृत्यु और पुनर्जन्म की यह प्रक्रिया अनिश्चित काल तक चलती रहती है और इसे रोकने का एकमात्र तरीका सचेत रूप से मुक्ति या मोक्ष तक पहुँचना है।
कर्मों से बचने के लिए,ध्यान करें: ध्यान करने से मन शांत होता है और अच्छे निर्णय लेने में मदद मिलती है. ध्यान करने से व्यक्ति एकाग्रचित होकर अपने काम करता है और उसे सफलता मिलती है।
अपने कर्मों की ज़िम्मेदारी लें: अपने किए गए बुरे कर्मों को स्वीकार करें, लेकिन अहंकार, आत्मग्लानि, या पछतावे की भावना के बिना,इससे आप गलतियों पर ठीक से विचार कर पाएंगे और भविष्य में वही गलतियां नहीं दोहराएंगे।
वासनाओं से बचें: अगर जीव में वासनाएं नहीं हैं, तो कर्म चिपकता नहीं. इस तरह, व्यक्ति धार्मिक रूप से सही जीवन जीकर कर्मों से बच सकता है।
कर्म वह विश्वास है कि जीवन में जो कुछ भी किया जाता है, वह अंत में वापस मिलता है,इसीलिए सोच समझकर कर्म करें।कर्मों का प्रभाव व्यक्ति के वर्तमान जीवन तक ही सीमित नहीं होता, बल्कि यह उसके अगले जन्मों को भी प्रभावित कर सकता है।
अच्छे कर्म करने से व्यक्ति का जीवन सकारात्मक रूप से प्रभावित होता है और वह खुशी की ओर जाता है. वहीं, बुरे कर्म करने से व्यक्ति नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है और दुख की ओर जाता है।
मनुष्य के जीवन में कर्म जितना महत्व रखता है, उससे कहीं अधिक परिणाम महत्व रखता है। कर्म का एक सिद्धांत है कि आप जैसा कर्म करेंगे, वैसा फल पायेंगे। यानि बहुत हद तक आपके कर्म का परिणाम ये तय करता है कि आपने अच्छे कर्म किए हैं या बुरे कर्म। उसके अलावा आपकी भावना, मंशा, सोच वगैरह भी आपके कर्म को अच्छा या बुरा बनाते हैं।
अगर आप कर्म की प्रधानता पर ध्यान नहीं देंगे तो आपके कर्मों के चक्र का संतुलन बिगड़ सकता है। आपके संचित कर्म पहले से ही आपके जन्मों के चक्र को बढ़ा रहे हैं और अगर आप जाने-अंजाने और बुरे कर्म करते हैं, तो यह बोझ और बढ़ता जायेगा। केवल इतना ही नहीं वर्तमान समय में आप कई नकारात्मक भावनाओं से भी जूझ रहे होंगे, जैसे कि आत्मविश्वास की कमी, आत्मसम्मान की कमी, आलस, ओवरथिंकिंग, डिप्रेशन, आलस वगैरह।
4 तरीके, जिनसे आप अपने बुरे कर्मों को बदल सकते हैं।
, समझदारी इसी में है कि आप बुरे कर्मों की श्रृखंला यहीं रोक दें और उन बुरे कर्मों से मुक्ति पाने का प्रयास करें जो आप करते आए हैं। एक आध्यात्मिक या सच्चे इंसान के लिए बुरे कर्मों से छुटकारा पाना मुश्किल होता है लेकिन नामुमकिन नहीं। चलिए जानते हैं ऐसे 4 तरीके, जिनसे आप अपने बुरे कर्मों को बदल सकते हैं या उनसे मुक्ति पा सकते हैं –
- कर्मों का सही तरीके से आंकलन:-
आप किस तरह के कर्म कर रहे हैं, यह समझने के लिए आपको कर्म के पीछे की भावना, मंशा और कारण समझना होगा। साथ ही ये भी कि आप ये कर्म किन परिस्थितियों में और किसके साथ कर रहे हैं। क्या आप किसी दवाब में हैं, किसी खराब रिश्ते से जूझ रहें हैं या आपके आसपास के खराब माहौल के कारण आपके कर्म प्रभावित हो रहे हैं। आपको नकारात्मकता के स्रोत को तलाशना होगा और फिर उससे जुड़ी समस्याओं को समझना होगा। इस प्रक्रिया में आपको पूरी तरह ईमानदार और निष्पक्ष रहना होगा। अगर आप खुद को सही ठहराने की सोचेंगे तो अपने कर्म के प्रति न्याय नहीं कर सकेंगे। - अपने कर्मों की जिम्मेदारी लें –
आपने अब तक जितने भी बुरे कर्म किए हैं, उन सबको स्वीकारना होगा लेकिन अहंकार, आत्मग्लानि या पछतावे की भावना के बिना। तभी आप उन गलतियों पर ठीक से विचार कर पायेंगे और भविष्य में वही गलतियां दुबारा नहीं दोहरायेंगे। जब तक आप खुद का बचाव करेंगे या अपनी गलतियों या बुरे कर्मों का दोष हालात या किसी और चीज पर डालेंगे, तब तक आपमें सुधार की गुंजाईश कम ही है क्योंकि आपकी मंशा ही आपके कर्मों को दिशा देती है। - अध्यात्म की मदद से खुद में सकारात्मकता लाएं –
एक बार जब आप अपने कर्मों की पहचान कर लेते हैं और उन बुरे कर्मों का कारण समझ लेते हैं, तो यह बेहद जरूरी है कि आप अपने कर्मों को सुधारने के लिए और भविष्य में वही गलती ना दुहराने के लिए कुछ सकारात्मक कदम उठायें। आप इसके लिए अध्यात्म की मदद ले सकते हैंक्योंकि अध्यात्म ही वह जरिया है जिसके जरिये आप नकारात्मकता से या किसी बुरी प्रवृत्ति, मानसिकता या भाव से मुक्ति पा सकते हैं। केवल यही वो जरिया है जिससे आप अपनी आत्मा को डिटॉक्स कर सकते हैं। अध्यात्म आपमें जागरुकता और चेतना लाता है और इससे आप अपने कर्मों के प्रति सावधान रह पाते हैं। - सत्कर्म करें –
बुरे कर्मों को अच्छे कर्मों में बदला तो नहीं जा सकता लेकिन अच्छे कर्म करके बुरे कर्मों का हिसाब जरूर कम किया जा सकता है। इसलिए उन सारे कारकों पर काम करें जो आपको अच्छे कर्म करने से रोकते हैं, चाहे वो आपकी संगति हो, माहौल हो, गुस्सा, बदला, अहंकार जैसी बुरी भावना हो या भुला ना देने और माफ ना करने का स्वभाव हो। लोगों से प्यार करें, खुद से प्यार करें, खुद को माफ करें, लोगों को माफ करें, आभारे रहें…. यही सारी भावना आपको कई दोषों से मुक्त कर देगी।
हर कर्म की प्रधानता पर ध्यान देना जरूरी है
जब आपके साथ कोई गलत करता है, तो वह उसका बुरा कर्म होता है। लेकिन उसी भावना में आकर जब आप भी गलती करते हैं, तो उससे ज्यादा आप उसे भुगत रहे होते हैं क्योंकि आपने एक बुरे कर्म को जन्म दे दिया। फिर वहां कुछ भी ना तो न्यायपूर्ण है और ना ही आपके लिए उस कर्म के परिणाम से बचने का कोई रास्ता बचा है। इसलिए अपने हर कर्म की प्रधानता पर ध्यान देना जरूरी है। आपके लिए यह सोचना जरूरी है कि आपको बदला जैसा क्षणिक सुख चाहिए या कुछ उससे बड़ा जो शायद अभी हासिल ना हो पर भविष्य में उसका कहीं संचय जरूर हो रहा है।