
परम आत्मा या भगवान एक ही है। परमात्मा का एक नाम हरि है और वही हरि जब नर रुप में प्रकट होता है, तो उन्हें हम नरहरी कहते हैं। उन्हें हम नररुप में हरि यानी परमात्मा का अवतार कहते हैं।
अवतार यानी अवतरण! उस दिव्य चेतना का मनुष्य में विशेष रूप से अवतरण।

सृष्टि का सृजनकर्ता पालनकर्ता और संहारकर्ता एक ही है। रोम रोम में रमने वाला, कनकन में बसने वाल, हर धड़कन में धड़कने वाला, श्वासो को चलाने वाला सबका एक ही है, जिन्हें हम परमात्मा कहते हैं।
जिन्हें हम परमात्मा कहते हैं वह हमारी भीतरी निराकार चेतन-शक्ति, चेतन-विवेक अवस्था, हमारी आत्मा है। उस भीतरी चेतन शक्ति का, उस भीतरी विवेक शक्ति का, ज्ञान का विकास जहां सबसे ज्यादा होता है उन्हें हम परमात्मा अवतार कहते हैं।
वहीं चेतन-शक्ति ब्रम्हांडीय आत्मा जहां संपूर्ण कलाओं से प्रकट होती है, तब हम उन्हें परम् अवतार या पुर्ण अवतार कहते हैं। जैसे की श्रीकृष्ण।
वहीं निराकार चेतन तत्व जहां कुछ विशेष अंश, कुछ विशेष कलाओं के रुप में प्रकट होता है, तब उन्हें हम अंशः अवतार कहते हैं। जैसे की धरती पर की अनेकों संत महात्माए।

जब-जब धर्म का र्हास होता है और अधर्म बढ़ने लगता है, तब वही निराकार चेतन-शक्ति, चेतन तत्व परमात्मा धर्म की घड़ी बिठाने और अधर्म को हटाने, धर्म की पुनः स्थापना हेतु कहीं पुर्ण रुप से तो कहीं अंश रुप से मनुष्यों के भीतर से प्रकट होता है, उन्हें हम अवतार कहते हैं। जैसे की श्रीमद शंकराचार्य। जैसे की महाराष्ट्र के नृसिंह सरस्वती जी। जैसे की हमारे गुरुदेव। तो इन्हें हम अवतार कहते हैं।
यह बाहर से भले ही अलग-अलग दिखते हो। लेकिन इनके भीतर का प्रकट हुआ चेतन-तत्व परमात्मा एक ही है। जो हम-सब के भीतर आत्मा रुप में विद्यमान है पर अभी पुर्ण रुप से विकसित नहीं हुआ है।
एक ही परमात्मा, दिव्य निराकार चेतन-शक्ति अलग-अलग जगहों पर, अलग-अलग नाम और रुपों से विशेष रूप से, कुछ विशेष कार्य के लिए मनुष्यों के भीतर से प्रकट होती है, तब उन्हें हम परमात्मा का अवतार कहते हैं।
धन्यवाद!