परमात्मा या ईश्वर को पाने के अनेक रास्ते हैं, जिनमे से कुछ बहुत कठिन हैं, तो कुछ बहुत सरल। कठिन रास्ता आमतौर पर ज्ञान मार्गी साधक अपनाते हैं, इसके लिए दृढ़ संकल्प और बहुत धैर्य चाहिए, हर कोई इस राह पर नही चल सकता। जैसे बुद्ध ने अपने आप को तपाया था, वैसे तपने की इच्छाशक्ति चाहिए। लेकिन एक साधारण आम इंसान के लिए भी परमात्मा ने आसान और सहज रास्ता बनाया है, और वो है, प्रेम, भक्ति और समर्पण का रास्ता।
शरणागति का रास्ता सबसे सहज और सरल है। इसके लिए कोई विशेष योग्यता या पात्रता नही चाहिए। बस निष्कपट हृदय में प्रेम से भरकर कोई पूरी तरह समर्पित होकर पुकारता है, और प्रेम के दो आंसु बहाता है, बस उतना ही पर्याप्त है, उसे पाने के लिए। दो घड़ी उसे अपना सबकुछ समझ के उसके पास बैठो, अपने मन की बात दिल खोल कर कह दीजिए उससे। किसी शब्द, भाषा या व्यावहारिकता का बंधन नहीं, सिर्फ दिल की बात निःशब्द, आसुओं से कह देनी है। कोई लाग लपेट की जरूरत नही, जैसे एक छोटा बच्चा अपनी मां से जुड़ा होता है, वैसे ही परमात्मा से जुड़ जाएं, तो वह अपना आंचल फैलाए सदा हमारी ओर निहार रहे हैं।
भगवद् गीता ज्ञान का सार भी यही है शरणागति, कर्म से बढ़कर ज्ञान है और ज्ञान से श्रेष्ठ भक्ति है, और भक्ति की अंतिम अवस्था शरणागति है। शरणागति के बिना भक्ति नहीं, भक्ति के बिना ज्ञान नहीं, ज्ञान के बिना कर्म नहीं, तो सभी का आधार है, शरणागति।
भगवतगीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है–
“सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।”18.66।।
अर्थात जब कोई रास्ता दिखाई न दे और यम, ध्यान, नियम, जप तप कुछ समझ न आए तो बस शरणागत हो जाओ, मैं तुम्हारे सब पापों को क्षमा करके तुम्हारा कल्याण कर दूंगा, इसमें तनिक भी संशय नहीं है।