जी! हमारे सहित सबकुछ ईश्वर का हैं। हम खुद भी ईश्वर के है। ईश्वर से अलग हमारा अपना कोई अस्तित्व नहीं है। हमारा बस अहंकार है, इसलिए हम ईश्वर के होकर भी ईश्वर से अलग है। जब हमारे उपर का अज्ञान और अहंकार का परदा हटता है तोह हमारे और ईश्वर के बीच में कोई अंतर नहीं रहता। अज्ञान और अहंकार हटने के बाद हम ईश्वर से एक, एकाकार हो जाते हैं।
सृष्टि में जो निराकार चेतना है, सृष्टि को चलायमान रखने वाला जो उसके भीतर का जीवन है, जो प्राण है, जो उर्जा, जो सृष्टि की आत्मा है, वह ईश्वर है। और यह संपूर्ण साकार सृष्टि ईश्वर का साकार शरीर है ऐसा समझो।
यहां ईश्वर के सीवा अन्य कुछ भी नहीं है। यहां साकार भी ईश्वर है और निराकार भी।
मनुष्य शरीर में जैसे एक जड़ और एक चेतन विद्यमान है, यह शरीर और आत्मा ही एक दूसरे के सच्चे पार्टनर है। यह शरीर पार्टनर शिप में चल रहा है। कोई भी एक ना हों तो शरीर ना चलेगा। शरीर नहीं तो ईश्वर यानी आत्मा किस काम की, वह प्रकट कैसे होगी? और आत्मा नहीं तो शरीर का अस्तित्व ही नहीं बचता। तो दोनों जरुरी है। इसमें आत्मा मुख्य है, तभी शरीर है, उसका अस्तित्व है।
सृष्टि का भी ठिक ऐसा ही है। ईश्वर है इसलिए सृष्टि है, पृथ्वी है, हम है, झाड़ फल फूल पानी जीवन सबकुछ है। जड़ भी और चेतन भी ईश्वर का ही प्रकटिकरण है और कुछ भी नहीं।
उन्होंने सृष्टि बनाईं। उसमें जीवन बनकर खुद रहने लगे। फिर मनुष्य बनाया। एक से अनेक हो गये। फिर खेल खेलने के लिए अज्ञान और अहंकार भी उसमें भर दिए। और फिर मनुष्य को उस से पार होने के लिए गुरु और गीता का उपहार भी उन्होने ही दिया।
यह सब अज्ञानी मनुष्य, जिनके उपर अज्ञान का परदा पड़ा हुआ है, नहीं समझ पाते की गुरु और गीता ईश्वर प्रदत्त श्रेष्ठ, अनमोल उपहार है। जिनके सहारे से हम मनुष्य संसार सागर से, सृष्टि के खेल-चक्र से पार हों सकता है।
धन्यवाद।