जीव को चाहिये कि अपना मन सब तरफ से हटाकर मालिक के चरणों मे लगावे।जो कहे कि मुझे परमात्मा से मिलने की इच्छा है और सांसारिक मोह व इच्छाएँ भी नहीं छोड़ता, वह स्वयं को ठगता है।।
भक्ति में गरीबी और अमीरी कोई महत्व नहीं रखते। गुरु तो मन की भावना देखते हैं। जिसने भी भगवान को पाया, केवल सच्चे प्रेम से ही पाया।।
गुरु के प्रेमी शारीरिक दुःखों से नहीं घबराते। धैर्य व शांति से नाम-सुमिरण करते हैं।।
किसी सेठ ने अपने नौकर को किसी कार्य हेतु विदेश भेजा था। वह वहाँ जाकर ऐश आराम में फँस गया; जिस ध्येय से गया था वह तो भूल ही गया। जब लौटा तो नौकरी भी गवांई और लज्जित भी हुआ। हमें भी प्रभु ने मानव-तन विशेषतः भजन-भक्ति के ध्येय से दिया है, इसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सन्सार में भेजा है। यदि हम भी सांसारिक विषय-भोगों में फँसकर अपना ध्येय भुला देंगे तो गुरु की कृपा से वंचित हो जायेंगे और उनके सामने लज्जित होंगे। बहुमूल्य हीरा अत्यधिक समय से एक कीमती हीरा, जो धरती के नीचे दबा हुआ हो, मिट्टी व कीचड़ से लथपथ हो, जब तक वह हीरा धरती से बाहर नहीं आएगा, कीचड़ से साफ नहीं होगा और किसी पारखू के हाथ नहीं आएगा, तब तक उसकी कीमत नहीं पड सकती। इसी तरह से जीव जन्म जन्मांतरों से काल और माया के नीचे दबा हुआ है और निम्न योनियों विषय-विकारों में लिपटा हुआ, 84 भुगत रहा है। इसकी कीमत तब पड़ेगी जब इसको निम्न योनियों से छुटकारा मिलेगा, काल माया के दबाव से निकलेगा, मनुष्य-योनि को प्राप्त करके किसी पारखू संत महापुरुषों की संगति में आएगा। वे इसके विषय विकारों के कार्य के आवरण हटाकर इसे साफ व निर्मल बनाएंगे। जब यह साफ हो जाएगा, तब इसकी कीमत पड़ेगी।
यह मनुष्य जन्म है जो कीमती हीरा, परंतु कल व माया के पंजे में आकर विषय विकारों के अधीन होकर अपनी कीमत एवं महत्व को खोकर इसे यूं ही बर्बाद कर रहा है। मानव जन्म का मिलन कितना सौभाग्य था इसका। महापुरुषों की वाणी है –
कबहुँक करि करुणा नर देही। देत ईस बिनु हेतु सनेही।।
प्रभु प्रभु ने स्नेहवश अकारण कृपा से इसे मानुष तन प्रदान किया है और चौरासी लाख योनियों से मुक्त कर दिया है। इसे महत्वपूर्ण जन्म प्रदान किया है। अब इसका क्या धर्म है, क्या इस कीमती, बहुमूल्य और दुर्लभ जन्म को काल माया के दबाव में पड़ा रहने दें। पहले भी चौरासी लाख योनियों को भुगत्ता रहा, काल और माया के अधीन असहनीय कष्ट झेलता रहा। इसकी जन्म जन्मांतरों की मांग के अनुसार अब उन सब कष्टों से छुटकारा प्राप्त करने की बारी आई है। वैसे भी यह जीव सुख स्वरूप सत-चित आनंदघन है। क्योंकि यह प्रभु का अंश है। इसमें वही दैवी गुण विद्यमान है जो ईश्वर परमात्मा में है।
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ईश्वर अंस जीव अबिनासी ।
चेतन अमल सहज सुख रासी ।।
सो मायाबस भयउ गोसाईं । बँध्यो कीर मार्केट की नाईं ।।
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शालिनी साही
सेल्फ अवेकनिंग मिशन

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