गुरु वचनों को रखना संभाल के।
एक एक वचन में गहरा राज है।।
यदि संसार की हालत को गौर से देखा जाए तो प्रत्येक मानव प्राणी दुःखी, अशांत और कल्पनाग्रस्त नज़र आता है। जबकि आधुनिक समय में शारीरिक सुख-सुविधा के अधिकाधिक सामान उपलब्ध हैं। हर तरह से आरामदेह साधन जुटाए गये हैं। इतना कुछ होते हुए भी दुःखी दिखाई दे, इसका क्या कारण है? कारण भी स्पष्ट है कि जितने भी मायावी सामान दृष्टिगोचर होते हैं सब काल और माया की रचना है।। यह अस्थायी और हमेशा रहने वाले नहीं हैं। इनके प्रयोग से कभी तृप्ति नहीं हो सकती बल्कि ज्यों ज्यों इंसान शारीरिक सुख भोग के सामान एकत्र करता है , उनका प्रयोग करता है त्यों त्यों उसकी कामना बढ़ती जाती है और इंसान दुख चिन्ता व गम में ग्रसित होता जाता है।
कुदरत की ओर से यह नियम है कि मायावी पदर्थों की तासीर दुःख और चिन्ता उत्पन्न करने वाली है।
इसलिए इन चीजों को अधिकाधिक प्राप्त कर के सुख और आंनद से वंचित हो जाता है।
ये सामान दुनियावी प्रयोग के लिए अवश्य हैं परन्तु इनकी कामना बढ़ाते जाना दुखद
श्री सद्गुरु देवाय नमः🙇🏻♀️
!!! बोलो जयकारा बोल मेरे श्री गुरुमहाराज की जय !!!
“गल पाथर कैसे तरें अथाह” अर्थात जिसके गले में बड़ा पत्थर बंधा हो वह सागर को कैसे पार कर सकता है? जब यह असम्भव है तो जिसके साथ पाँच बड़े-बड़े विकार रूपी पत्थर बंधे हों तो वह भवसागर से पार कैसे होगा? इसलिये शब्दाभ्यासी को काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार इत्यादि विकारों का त्याग कर देना चाहिये।।
अभ्यासी पुरुष जो कि अभ्यास में सलंग्न रहता है, सन्सार में यदि उसका कोई प्रिय सम्बन्धी चल बसे तो उसे कोई शोक नहीं होता क्योंकि उसका मन सच्चे नाम के अभ्यास में लगा होता है।।
युवावस्था में अच्छी संगति करनेवाला वृद्धावस्था में परेशान नहीं होता।।
सतगुरु के समान परोपकारी इस संसार में कोई नहीं, क्योंकि उनके उपकार में जीव-कल्याण की भावना निहित है। लेकिन आम सन्सारी लोगों के उपकार की भावना में कोई न कोई स्वार्थ छिपा ही होता है। इसलिए इस प्रकार के उपकार से आत्मिक उन्नति नहीं होती।।
जीव अपनी सामर्थ्य को भूल कर दीन दुःखी होकर गुलामों जैसा पराधीन जीवन व्यतीत करता है। जिसके भाग्य उदय होते हैं, उसे सतगुरु की शरण प्राप्त होती है। “सतगुरु” उसे उसकी महान शक्ति का बोध कराते हैं और शब्द रूपी डोर प्रदान कर उसे सचखण्ड में ले जाते हैं। जन्म-जन्म के बिछुड़े हुऐ को परम पिता से मिलाकर गुलाम से मालिक बना देते हैं। धन्य हैं सतगुरु ! ।।
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शालिनी साही
सेल्फ अवेकनिंग मिशन