यथार्थ प्राप्ति यानी ईश्वर प्राप्ती।

ईश्वर प्राप्ति के कई मार्ग है, ठिक वैसे ही ईश्वर प्राप्ति में बाधाएं भी अनेकों होती है।

इसमें से सबसे बड़ी बाधा है, सदगुरु वचनों पर दृढ़ विश्वास का न होना। साधु संतों के प्रति, गुरुतत्व के प्रति प्रेम का न होना, गुरू प्रणित मार्ग, सदगुरु ने दिखलाया हुआ जो मार्ग है, उसका अनुसरण करना छोड़कर अन्य, मनमाना आचरण करना।

दूसरी बड़ी बाधा है, भौतिक इच्छाए, वासनाएं, आसक्तियां। यह चाहिए, वह चाहिए और उन इच्छाओं की पूर्ति के लिए परमात्मा चाहिए। इसलिए भी परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती। पास में होकर भी उनसे कभी मुलाकात नहीं होती।

परमात्मा भीतर ही बैठे हैं, हर कर्म का, हर अच्छे बूरे सोच-विचार का चित्रगुप्त बनकर हमारे ही भीतर से लगातार चित्र खींच रहें हैं। बहुत बारिकाई से हिसाब होता हैं, और उसमें हम फेल हो जातें हैं।

परमात्मा प्राप्ति का सबसे बड़ा साधन है उनसे प्रेम, सहजता सरलता। उसके बाद बाकी सभी उनका भजन पूजन सेवा सत्संग जो भी हो।

सरलता नहीं होती, सरल मन वालों के लिए ईश्वर सहज सुलभ है। उन्हे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती। परमात्मा प्राप्ति में मन की शुद्धि आवश्यक है। वह नहीं होती।

हमे हर किसी को बस ऐसा लगता है कि, हमारा मन बहुत शुद्ध है, हम बहुत अच्छे इंसान हैं। लेकिन जब परमात्मा की नजर से देखते हैं, तो हमारा मन शुद्ध नहीं होता, और हम बहुत अच्छे इंसान भी नहीं होते। यह एक सच्चाई है।

लगभग लोगों को संसार ही चाहिए होता है, केवल परमात्मा प्राप्ति के लिए बहुत कम लोग प्रयास करते हैं।

बहुतांश लोग सुखी होने के लिए ईश्वर भक्ति करते हैं, देवी-देवताओं की पूजा करते रहते हैं, वे ईश्वर से अपनी इच्छाएं पूरी करवाना चाहते हैं, कभी कभी उनकी इच्छाएं पूरी भी होती है। और फिर वही इच्छाएं उनके दुःख का कारण बनती है, उन्हें ईश्वर से दूर ले जाती है।

व्यर्थ की इच्छाओं वासनाओं आसक्तियों ने ही मनुष्य को भटकाया है, इच्छाओं वासनाओं आसक्तियों के कारण मनुष्य बार-बार जन्म लेता है, मरता है। इच्छाओं वासनाओं, आसक्तियों के कारण मनुष्य ईश्वर से दूर होता जाता है।

अशुद्ध, अहंकारी मन, सरलता का अभाव, बहुत सारी इच्छाएं, आसक्तियां यथार्थ या परमार्थ प्राप्ति में बड़ी बाधा है। ऐसी और भी बहुत-सी बाधाएं हैं।

भक्ति में आगे बढ़ने पर आने वाली सिद्धियां भी बाधा होती है।

लोगों से मिलने वाला मान-सम्मान भी बाधा बनता है, कुछ लोग उसमें ही फंसते हैं।

भक्ति में आगे चलकर मिलने वाली सिद्धियां साधक कि परीक्षा करने के लिए, होती है। वे अपनी आप आती है, और फिर कुछ लोग उसमें ही अटक जातें हैं, और फिर ईश्वर से दूर भटक जाते हैं।
धन्यवाद।

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