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ऑब्सेशन में कोई सोच, कोई आइडिया होता है जो इंसान के मन में बार-बार आता है। इस पर कंट्रोल नहीं होता है। कई बार ऑब्सेशन होता है तो व्यवहार में कंपल्शन भी आ जाता है। जैसे- हाथ धोने या क्लीनिंग जैसे कामों से मरीज मन की घबराहट को कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं।”
आपका दिमाग आपको संकेत भेज रहा है कि आपको कुछ करने की ज़रूरत है, भले ही कोई वास्तविक जोखिम न हो। यह आप पर चिल्ला रहा है कि आपको कार्रवाई करने की आवश्यकता है। यही कारण है कि ओसीडी इतना वास्तविक लगता है। आपके मस्तिष्क में एक बहुत ही वास्तविक प्रक्रिया चल रही है।
ओसीडी के शुरुआती लक्षण क्या होते हैं?
👉🏻दोहराव वाला व्यवहार
नियम से संचालित होना
👉🏻घर या किसी पसंदीदा जगह से निकलने के दौरान का कठिन समय
👉🏻हाथ धोना
अत्यधिक सफाई
👉🏻 व्यवहार की जाँच
👉🏻 गिनती
क्या ओसीडी ठीक हो सकता है?
दुर्भाग्य से, ओसीडी का कोई इलाज नहीं है। हालाँकि, ऐसे तरीके हैं जिनका उपयोग कई लोग अपने लक्षणों को प्रबंधित करने के लिए करते हैं ताकि वे उनके जीवन पर नकारात्मक प्रभाव न डालें।
जिन लोगों को ओसीडी होती है वे आमतौर पर बहुत चौकस होते हैं और छोटी-छोटी बातों पर बहुत ध्यान देते हैं। यह विशेषता कई अलग-अलग स्थितियों में उपयोगी हो सकती है – स्कूल में, काम पर, रचनात्मक शौक पूरा करते समय, इत्यादि । वास्तव में, अधिकांश लोग ऑटोपायलट पर जीवन गुजारते हैं, और विवरण पर ध्यान अक्सर किनारे रह जाता है।
हमारी जीवनशैली का हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है। हमारा खानपान और रहन-सहन हमारे जीवन को काफी प्रभावित करता है। कामकाज के बढ़ते प्रेशर और कई चीजों के तनाव की वजह से इन दिनों मानसिक स्वास्थ्य काफी प्रभावित होने लगा है। भागदौड़ और व्यस्तता से भरे जीवन के चलते लोग लगातार कई मानसिक विकारों का शिकार हो रहे हैं। लेकिन कई बार इन विकारों की सही पहचान न होने की वजह से लोगों को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं। ओसीडी यानी ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर ऐसी ही एक मानसिक बीमारी है, जिससे इन दिनों कई लोग परेशान है।
ओसीडी एक तरह की मानसिक बीमारी है, जिससे पीड़ित व्यक्ति के मन में एक ही तरह के विचार बार-बार आते हैं। खास बात यह है कि पीड़ित व्यक्ति को यह पता रहता है कि बार-बार एक ही चीज सोचने का कोई मतलब नहीं है, लेकिन इसके बावजूद वह ऐसा करने से खुद को रोक नहीं पाता है। आमतौर पर किसी मजबूरी का शिकार लोग इस समस्या की चपेट में आ जाते हैं। यह समस्या ज्यादातर किशोरों या युवाओं में देखने को मिलती है। ज्यादा साफ-सफाई करना, चीजों को गिनना, बार-बार हाथ धोना आदि इस समस्या के मुख्य लक्षण हैं।