कुछ दुःख प्रसादी के रूप में आते है, कुछ दुःखों के कारण ही जीवन स्वर्ग जैसा सुंदर, पवित्र-पावन हो जाता है। और इसका एक सुंदर उदाहरण हमारी एक बहेन।

कुछ लोग बचपन से ही पड़े अच्छे संस्कारों के कारण सरलता और सादगीपूर्ण होते हैं। वह बेचारी भी ऐसी ही थी, बिल्कुल सरल। और इसी सरल और साधारण स्वभाव के कारण उसके घर के यानी ससुराल वाले लोग उसे पसंद नहीं करते।

बहुत ज्यादा भौतिकता में भटकने वाले कुछ लोग भीतर की सुंदरता को नहीं जानते, और वह अध्यात्मिक सहज, सरल लोगों पागल समझने लगते हैं। तो उस बहेन के साथ भी ऐसा ही हुआ। वे लोग उसे पागल समझकर मार पीट करते। और वह बेचारी उस दुःख के कारण दुःख मुक्ति के लिए परमात्मा को पुकारतीं रहती।

दुःख से मुक्ति मिले, घर के सब लोग अच्छे व्यवहार करे इसलिए वह बहेन परमात्मा की भक्ति करने लगीं। और उसकी वहीं भक्ति आगे चलकर परमात्मा की अनन्य भक्ति में बदल गयी। गुरु चरणों और गुरुतत्व से उसे प्रेम हो गया, संतों-महात्माओं से प्रेम हो गया। नश्वर संसार से विराग और परमात्मा में सच्चा राग हो गया।

अब आप देखो यह दुःख उसके लिए कितने अच्छे साबित हुए। उन दुःखों ने ही उसे संसार से छुड़ाकर परमात्मा में स्थापित कर दिया। दुःख प्रसादी है भाई, संसार और संसारियो की असलियत जानने के लिए, मनुष्य को नश्वर से छुड़ाकर ईश्वर में स्थापित कराने के लिए थोड़े बहुत दुःख भी जरूरी है।

मनुष्य परमात्मा से ऐसे ही नहीं मिलता, दुःख उसकी भक्ति को तेज करने का काम करते हैं। और फिर इन्हीं दुःखों के कारण भक्त अनन्य भक्त बनता है, और फिर परमात्मा से एकरुप हो जाता है।

शरीरादि में, संसार में मोह रखना ही मुमुक्षू जनों की भारी मौत है। और यह दुःख उसी मोह को नष्ट करने का काम करते हैं।
देह स्त्री पुत्र या धन में मोह रखना ही मुमुक्षु के लिए मृत्यु समान है। लोगों से मिले दुःख मोह का नाश करते हैं।
व्यक्ति दुःखों के कारण आत्मतत्व में स्थित होता है, अमर होता है, दुःख अमरत्व की प्राप्ति का साधन है।

देह में क्या रखा है? त्वचा, मांस, रक्त, स्नायु, मेद, मज्जा, और अस्थियों का समूह है देह। मल मुत्र से भरा थैला है यह हमारा देह। लोगों को इसे, ऐसे देह से प्यार हो जाता है। और वह देह नहीं मिलता तो लोग दुःखी रहते हैं। दोस्तों! अगर किसी देही से दुःख मिल रहा है, तो वह हमारी आसक्ति छुड़ा रहा है, यह दुःख अच्छा है। हमे ऐसे लोगों का धन्यवाद अदा करना चाहिए और नश्वर को छोड़ ईश्वर से प्रेम करने का प्रयास करना चाहिए।

दुःख के कारण ही मनुष्य महात्मा बनता जाता है। दुःख वह छन्नी हथौड़ा है, जो उस पत्थर रुपी मनुष्य को मुर्ती में रुपांतरित कर देते हैं, दुःख प्रसादी है।

ईश्वर और नश्वरता का बोध होने के लिए, अस्थिर संसार और सच्चिदानंद सर्वेश्वर का बोध होने के लिए, ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या का बोध होने के लिए, मनुष्य को संसार में अलिप्त निर्लिप्त रहने के लिए दुःख सहायक होते हैं, दुःख प्रसादी है।

अगर पति या पत्नी बहुत अच्छे होंगे, तब हम उसी शरीरों वाले क्षुद्र प्रेम में फंसे, लिपटे रहेंगे। जब सुख बहुत होता है, कोई परमात्मा को याद नहीं करता। संसारिक सुख नश्वर है लेकिन सबको वहीं चाहिए। मनुष्य एक छोटे बच्चे जैसा है और परमात्मा मां जैसा।

बच्चा किचड़ में खेलने में धन्यता मानता है और मां उसे बाहर खींचती रहतीं हैं, धोती रहतीं हैं। तब बच्चा रोता है, मां का किचड़ से बाहर निकलना उस बच्चे को दुःख लगता है, लेकिन उसमें ही उस की भलाई होती है।
परमात्मा भी हमारी मां है, सच्चा पिता है। वह हमारी भलाई, हमारा कल्याण किस में छिपा है जानते हैं। और इसलिए छोटे छोटे दुःख जीवन में भरते है, और उस दुःख में हमारा कल्याण छिपा होता है।
धन्यवाद!

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