हमारे जीवन में सद्गुरु की अनन्य साधारण महिमा है। हर मनुष्य के जीवन में गुरु का अनन्य साधारण महत्त्व होता है। सद्गुरु की संपूर्ण महिमा गाना किसी के लिए भी असंभव है।

मनुष्य जीवन में जब तक गुरु नहीं तब तक उसे ज्ञान नहीं होता, और जब तक सद्गुरु नहीं तब तक आत्मज्ञान नहीं होता।

बीना सद्गुरु के मनुष्य पशु तुल्य होता है।

निराकार ब्रह्म का ज्ञान, निराकार ब्रह्म का साक्षात्कार केवल सद्गुरु कृपा प्रसादी है।
ह्रदयस्थ आत्मा सो परमात्मा का ज्ञान केवल सद्गुरु कृपा प्रसादी है।

संत तुकाराम जी कहते हैं,

“गुरु चरणी ठेवीता भाव,
अपोआप भेटे देव।”

इसका भावार्थ है-जिनका सदगुरु में विश्वास, सदगुरु चरणों में भाव यानी प्रिती होती है, उन्हें परमात्मा की सहज प्राप्ति होती है।

सद्गुरु दिक्षा में हमे परमात्मा का दान देते हैं। बेशक परमात्मा सर्वव्यापी है, सर्वत्र है फिर भी आजतक जिन्होंने ने भी परमात्मा को पाया है, सद्गुरु कृपा से ही पाया है।

बीना सद्गुरु के परमात्मा नहीं मिलते, न किसी के समझ आते।

“गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर।
गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः”

गुरु यानी सद्गुरु को ब्रह्म की उपमा दी गई है। गुरु को विष्णु कहा गया है, और वे विष्णु है। सद्गुरु साक्षात् और साकार विष्णु स्वरूपा होते हैं।
समस्त शास्रों और संतों ने सद्गुरु को महेश्वर भी कहां है। क्योंकि धरतीपर के सबसे बड़े देव सद्गुरु ही होते है।

ईश्वर के ज्ञान अवतार को सद्गुरु कहते हैं।

सद्गुरु की महिमा अपार है। अपना हित चाहने वालों को चाहिए कि, तिर्थो और मंदिरों के चक्कर काटने के बजाय किसी सच्चे और अच्छे सद्गुरु को ढुंढे। सद्गुरु को भजे।
सद्गुरु प्राप्ति के लिए परमात्मा से, भगवान दत्तात्रेय जी से प्रार्थना करे। और अपने मनुष्य जीवन का सार्थक करें।

कबीर साहब कहते हैं,

“गुरु गोविंद दोनों खड़े काके लागूं पाय,
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए।”

गोविंद से पहले गुरु की पूजा होती है। इसी से हमें पता चलता है कि हमारे जीवन में गुरु की महिमा कितनी है। गोविंद की प्राप्ति तो सद्गुरु कृपा प्रसादी हैं। सद्गुरु गोविंद से यानी परमात्मा से भी बड़े है। सद्गुरु परमात्मा का ज्ञान अवतार हैं।

अगर मनुष्य जीवन है तो उसमें सद्गुरु चाहिए। तभी उस मनुष्य जीवन का सार्थक होगा। नहीं तो मनुष्य जीवन पाकर भी न पाने जैसा ही है।


धन्यवाद!

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