हां अहंकार और आत्मविश्वास दोनों एक जैसे, एक समान लगते हैं, पर दोनों में बहुत ज्यादा यानी जमीन आसमान का अंतर है। आत्मविश्वास के मूल में ज्ञान होता है और अहंकार के मूल में अज्ञान।

अहंकार के हमेशा दो रूप होते हैं। उसमे से एक है तामसिक अहंकार और दूसरा है सात्विक अहंकार। यह जो सात्विक अहंकार है, यही आत्मविश्वास है।

इसमें से जो आत्मविश्वास है वह मनुष्य को विकास की तरफ ले जाता है और दूसरा जो अहंकार है वह विनाश की तरफ।

सरलता के अभाव को अहंकार कहते हैं।

अज्ञात के कारण आत्मा के उपर चढ़ी हुई बहुत सारी परतें, बहुत सारी गलत धारणाएं और उसपर डटे रहने के भाव को अहंकार कहते हैं।

मैं कुछ हूं, मैं यह हूं, मैं वह हूं। अपने मूल वास्तविक स्वरूप को जानता नहीं है, लेकिन जो उपरी उपरी परतें है उसी को मैं मानता है और मैं मैं करता रहता है। यह है अहंकार।

तामसिक अहंकार हानिकारक होता है।
तामसिक अहंकार दूसरों को कम और खुद को ही ज्यादा नुक्सान पहुंचाता है।
तामसिक अहंकार विकास का दुश्मन है।
तामसिक अहंकार से आत्मविकास नहीं होता।
सात्विक अहंकार से यानी कि आत्मविश्वास से आत्मविकास होता है।

अहंकार में “मैं” भाव है और आत्मविश्वास में “हैं” भाव।

आत्मविश्वास हमेशा भीतर से, यानी आत्मा मन व शरीर की स्वीकृति से आता है। और अहंकार जो है उपर उपर का है, अहंकार को आत्मा की स्वीकृति नहीं होती।

आत्मविश्वास मतलब है खुद पर भरोसा।
आत्मविश्वास मतलब है खुद की क्षमताओं पर भरोसा।
आत्मविश्वास मनुष्य के भीतर की एक मानसिक शक्ति है जो उसे विकास की तरफ ले जातीं हैं।

आत्मविश्वास यानी आत्मा+विश्वास। मतलब जो भीतर से, अपनी आत्मा से आता है, वह विश्वास आत्मविश्वास है। यही आत्मविश्वास सफलता की नींव है।

अहंकार में खोखलापन होता है और आत्मविश्वास में एक मजबूती।
अहंकार विवेकहीनता है और आत्मविश्वास विवेकशीलता।

आत्मविश्वास धैर्य, शांति, स्थिरता का प्रतीक है और अहंकार उथलापन, अस्थिरता, अशांति का।

“अहं ब्रम्हास्मी” मैं ही वह ब्रह्म हूं। यह भी एक अहंकार है, लेकिन यह सात्विक अहंकार है।
सात्विक अहंकार हमेशा अच्छा होता है।

सात्विक अहंकार मनुष्य के भीतर की श शक्ति है और तामसिक अहंकार मनुष्य की एक बहुत बड़ी कमजोरी।

अहंकार अपनी कमीयों को स्वीकार नहीं करता। लेकिन आत्मविश्वास अपनी कमीयों को स्वीकार भी करता है और उन्हें दूर करने का यथासंभव प्रयास भी करता है।

अहंकार को खत्म करने का एक ही उपाय है उसमें आत्मजागृति लाना। आत्मजागृति से अहंकार को कम किया जा सकता है। जब-तब स्वयं के बारे में पूरा ज्ञान नहीं होता यह अहंकार बना ही रहता है।
धन्यवाद।

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