प्रार्थना से!

मौन होकर सच्चे दिल से की गई प्रार्थना परमात्मा सुनते हैं।

परमात्मा हमारी बात सुने, हमे कुछ अनुभव दे इसके पहले हमें अपने आचरण व्यवहार में शुद्धता लानी होगी। स्वार्थी बुध्दि को छोड़ना होगा। ख़ुद के साथ साथ थोड़ा दुसरो के लिए भी जीना सीखना होगा। अपने अंदर प्रेम पैदा करना होगा। खुद प्रेमस्वरूप बनना होगा। यह प्रेम बडी कमाल की चीज है।

परमात्मा प्रेमरुप है! जिसके ह्रदय में प्रेम पैदा होगया परमात्मा खुद ही उनके बात करने लगते हैं।

आत्मा और परमात्मा का सम्बंध शाश्वत है। आत्मा परमात्मा की अंश है। इसी कारण निर्विकार अवस्था में मौन से, सच्चे मन से परमात्मा के प्रेम में प्रेममय होकर की गयी प्रार्थना सुनते हैं। परमात्मा से बात करने का यही एक तरीका है।

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