
मृत्यु जीवन का अनिवार्य सत्य है, जिसे झठलाया नही जा सकता। मौत होना सृष्टि के नियमनुसार निश्चित है। ये विशाल ब्रह्मांड नियमों के तहत ही संचालित होता है, अतः जन्म के साथ मृत्यु होना भी इसका महत्वपूर्ण नियम है। जीवन हमे एक अवसर के तौर पर मिलता है कि इसमें हम कुछ सीखें और अपनी आत्मा का कल्याण करें। इसमें जन्म से मृत्यु के बीच का समय हमे मिलता है। समय समाप्त होते ही जीवात्मा अपनी यात्रा पर आगे, ये शरीर छोड़ चली जाती है। और सच में मृत्यु की वजह से ही जीवन का सार्थकता है, यही जीवन को महत्वपूर्ण बनाता है।
यह एक आने और जाने की प्रक्रिया का नाम है। और प्रकृति में हर घटना दो विपरीत रूपों में घटित होती है, जैसे: दुख और सुख, अच्छाई और बुराई, लाभ और हानि, अंधकार और प्रकाश…..।
अब जो इस सत्य को जान लेते हैं की मैं शरीर नही आत्मा हूं, और मेरा कभी नाश नही हो सकता, वो मृत्य के भय से मुक्त हो जाता है। वही आत्मज्ञानी है जिसने अपने आत्मस्वरुप को जान लिया कि मैं अजर अमर अविनाशी हूं, तो वह फिर आनंद में ही जीता है, उसके लिए ना कुछ जन्मता है, ना मरता है। उसे ये दोनो एक घटना के तौर पर दिखाई देती है, क्योंकि वह साक्षी भाव में स्थित है।
जो उस परमात्मा से प्रेम भाव से जुड़े हैं और समर्पित हो चुके हैं, उन्हे मृत्यु कोई तकलीफ नहीं देती। मृत्यु केवल शरीर और संसार से आसक्त लोगों को तकलीफ देती है।