हमारे मन में यह स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि यदि हमने कोई गलत कर्म किया नही, बस सोंचा है तो क्या इसका भी परिणाम हमे भुगतना पड़ता है?

ऋग्वेद – 

इसका जवाब है नहीं, क्योंकि कलियुग में लाख बुराइयां हैं लेकिन उसे ईश्वर का वरदान प्राप्त है कि कलियुग में मन से किए गए पाप को पाप नही माना जायेगा, और उसका फल निर्मित नही होगा जब तक उसे कार्यरूप में परिणित ना कर दिया जाए। किंतु इसके ठीक विपरीत मन से किए पुण्यों को पुण्य माना जायेगा, और उसका फल आपको मिलेगा। यही कलियुग की विशेषता है, जो सतयुग में लंबे समय तक जप करने से फल मिलता था वो पुण्य कलियुग में सिर्फ नाम जप करने से मिल जाता है। इसलिए कलियुग में थोड़ा सत्कर्म भी बहुत फलदाई है।

लेकिन मन से सोचें गए पाप सीधे आपको कर्म का फल नही देते फिर भी गलत सोच आपके अवचेतन मन में गलत संस्कारों का निर्माण करते हैं। और ये संस्कार भले तुरंत दिखाई ना दे पर ये आपको गलत कर्म के लिए प्रेरित जरूर करते हैं। अतः प्रत्यक्ष नही पर अप्रत्यक्ष रूप से ये आपको पाप करवाते हैं, अर्थात गलत कर्मों के बीज मन में डाल दिए गए हैं, जो अनुकूल वातावरण होने पर अंकुरित हो सकते हैं। अतः सावधानी से मन के विचारों पर नियंत्रण रखें। ये विचार ही एक दिन आपके कर्म बनेंगे निश्चित ही।

तो जब मन में नकारात्मक विचार आए तो तुरत उसे अपने विवेक से काट दें या विपरित अच्छे विचार लाकर उसे हटा दें। इससे आप गलत सोचने से बच जायेंगे। अपने समय को सदकार्य और सद्चिंतन में लगाएं।

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