आत्मा परमात्मा का ही अंश है अतः परमात्मा के सभी गुणों से आत्मा भी युक्त ही है। अंतर सिर्फ इतना है कि उस पर विकारों की मैल चढ़ी है जिसे हटाते ही हमें अपना असली रूप दिखाई देने लगता है। वासनाएं और इच्छाएं मन को भटकाती हैं, जिससे हम अपने असली रूप को देख नही पाते। माया अर्थात काम, क्रोध, अहंकार, मद, मोह ये सब परदे मन के ऊपर होते हैं, तो सत्य कहां से दिखाई देगा? इसलिए आत्मा के गुण तो उसमे विद्यमान सदैव से है, उसे सिर्फ पहचानना बाकी है। सिर्फ माया का परदा हटाना है, फिर सिर्फ हम बचे रह जाते हैं अपने संपूर्णता के साथ, समस्त गुणों के साथ।

हमारे गुण क्या हैं? हम सत् चित् आनंद रूप हैं, सत्यम शिवम सुंदरम हैं, जिसकी कभी मृत्यु नही होती, वह अविनाशी सत्ता परमात्मा हम ही हैं। सारे वेद शास्त्र, ग्रंथ भी जिसकी महिमा और गुणों का बखान नही कर सकते वो सारे गुण हमारे भीतर है। इस तरह हमारे गुण भी अनंत हैं और इसे प्रकट करने के लिए सदमार्ग पर चलना, सत्कर्म करना, अपने संस्कारों को परिमार्जित करना, कर्मबंधनों को काटना, जन कल्याण करना, आत्मजागृति के प्रयास, ध्यान, सेवा, पूजा भक्ति, प्रेम जैसे साधनों को अपनाना चाहिए। किसी समर्थ सतगुरु की शरण में जाकर अपने को समर्पित कर देना चाहिए। और गुरु के बताए नियमों का पालन करके उन पर विश्वास के साथ आगे बढ़ना चाहिए। तो जैसे–जैसे हम आध्यात्मिक मार्ग में आगे बढ़ते जाते हैं हमारे भीतरी गुण बाहर परिलक्षित होने लगते हैं। क्योंकि जो हमारे भीतर होता है वही बाहर दिखाई देता है। अतः आत्मा के महान गुण जीवन में उतरे और सबके लिए कल्याणकारी हो इसके उपाय किए जाने चाहिए।

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