
हम परमात्मा का ही अंश हैं अतः हमारे भीतर भी वो सारे गुण और शक्तियां समाई हैं, जो परमात्मा में है। बस अंतर इतना है कि अज्ञानतावश हम भूल जाते हैं कि हम क्या हैं। शुद्ध चेतन स्वरूप होने के बावजूद पांच विकारों काम, क्रोध, मद, मोह और अहंकार के अधीन होकर हम अपना असली स्वरूप भूल जाते हैं। यही माया है कि हम खुद को कुछ और समझने लगते हैं, जो कि हम नही हैं।
तो इसका कारण अज्ञानता है, अतः उसे दूर करने का प्रयास करना होगा, जैसे गुरु की शरण में जाकर अपनी अज्ञानता को दूर करना, उनके बताए निर्देशानुसार तकनीकों को अपनाना और योग, जप, ध्यान, नियम, तप, आहार–विहार के नियमों का पालन करके अपने ज्ञान के स्तर को बढ़ाना। अपने विकारों पर विजय पाना, इच्छाओं और वासनाओं पर नियंत्रण करना।
साथ ही सबसे बड़ी बाधा अपने अहंकार से मुक्ति है, जैसे विनम्रता, सेवा, दान, कर्म, निष्काम कर्म करना, हर पल ईश्वर के प्रति कृतज्ञता जाहिर करना, उसका धन्यवाद करना कि जो कुछ दिया बहुत है। सबके कल्याण की भावना से प्रार्थना करना।
ये सब करते करते मन का मैल धुलते जाता है, और हमारे भीतर की आंतरिक शक्तियां विकसित होने लगती है। हमारी भीतरी शक्तियां हैं, सत् चित् आनंद रूप, अर्थात प्रेम, शांति, सहनशीलता, सौहाद्र, विचारशीलता, करुणा आदि…..। अतः संकल्प शक्ति के साथ अपनी आंतरिक शक्तियों को जागृत किया जा सकता है। और मानव जीवन का यह एक परम लक्ष्य है कि अपने आप को जाने और अपनी शक्तियों के साथ, सम्पूर्ण क्षमता के साथ जीवन को सार्थक करें। खुद के कल्याण के साथ संसार के कल्याण का भी कर सकें।
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