अच्छे और महान लोगो को जीवन के अंतिम समय में इतनी तकलीफे और कष्ट क्यों प्राप्त होते है?
महान या अच्छे लोग परमात्मा का ही स्वरूप होते है। उनकी ऊर्जा ब्रम्हांडीय ऊर्जा से इस कदर कनेक्टेड रहती है की परमात्मा और संत महापुरुषों में कोई भेद नहीं रहता है। ये बहुत ही दिव्य आत्माएं होती है। परमात्मा ही सदगुरु के रूप में अवतरित होते हैं।
यह सम्पूर्ण सृष्टि,संपूर्ण ब्रह्मांड कर्म सिद्धांत पर चलता है, इसीलिए हर अच्छे बुरे कर्म का भुगतान हर जीव को भुगतना पड़ता ही है। जब पृथ्वी पर पाप बढ़ता है, तब पृथ्वी पर भूकंप, बाढ़,आग का प्रलय, हिम स्खलन,पहाड़ गिरना इत्यादि अनेक आपदाओं के कारण अनेक जीवों की मृत्यु होती हैं।
जब पृथ्वी पर कोई भारी भरकम संकट आनेवाला होता है तब पृथ्वी मां को भी तकलीफ होती है और वो अपना दुःख दूर करने के लिए परमात्मा के चरणों में प्रार्थना करती है। परमात्मा तो दीनदयाल,करुणा की मूरत होते हैं। परमात्मा ही पृथ्वी पर अलग-अलग रूपों में अवतरित होते है। परमात्मा मानव रूप में अवतरित होकर अपने अनेक भक्तों और शिष्यों के कर्मों का भुगतान स्वयं करते है। भक्तों को भी अपने कर्मों का भुगतान करना पड़ता है, लेकिन सदगुरु अपने शिष्यों के बहुत सारे कर्म कांट देते है।
संत रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु कैंसर से हुई थी,उन्हें अत्यंत पीड़ा झेलनी पड़ी थी। भगवान कृष्ण की भी मृत्यु पांव के तली को तीर लगने से हुई थी। सदगुरु जग्गी वसुदेव के ब्रेन में अभी कुछ दिनों पहले क्लॉट हुआ था और सर्जरी करनी पड़ी थी। तो ये सवाल उठता है की इतने महान हस्तियों को इतनी ज्यादा तकलीफ और दुःख क्यों झेलने पड़ते है? दरअसल सदगुरु अपने अनेक भक्तों के नकारात्मकता का भुगतान स्वयं करते है, इसीलिए शारीरिक तकलीफों के माध्यम से वे भुगतान करते हैं।
सदगुरु को शरणागत प्रतिपाल कहते है। सदगुरु केवल अपने शिष्यों के कर्मों का ही भुगतान नहीं करते, बल्कि पृथ्वी पर आनेवाली आपदा भी अपने ऊपर लेते है। सदगुरु श्री परमहंस महाराज जी के आंखों को बड़ी सूजन और तकलीफ थी,तब एक भक्तानी ने उनसे पूछा की आपके आंखों की पीड़ा मैं लेती हूं, आप मुझे अपनी यह पीड़ा देना। तो सदगुरु ने कहा अनेक भक्तों की पीड़ा यह आंखे झेल रही है, तुम यह पीड़ा सह नहीं पाओगी। सदगुरु तो कर्मबंधनों से पार है,लेकिन करुणावश,जीवों के कल्याण हेतु ,विश्व की नकारात्मकता और अगणित ऐसे कर्मों का भुगतान वे मनुष्य रूप में अवतरित होकर करते है।
पृथ्वी पर आनेवाला एक भारी भरकम संकट परमहंस महाराज जी ने अपने ऊपर लिया था जिसके कारण उनका दाहिना हाथ पैरालाइज हुआ था। एक बार परमहंस महाराज जी ने प्राकृतिक आपदा को अपने हृदय के ऊपर लिया था,जिससे कई दिनों तक उनके हृदय में तकलीफ थी। सदगुरु जगतारण होते है, अथांग प्रेम का सागर, दीनदयाल होते है। वे अपने बच्चों को उचित शिक्षा देकर,उनके भारी कर्म स्वयं पर लेते है।
सदगुरु अपने अंतिम श्वास तक जगतकल्याण करते ही रहते है। अपनी मृत्यु के समय में भी लोगों की नकारात्मकता और कितने सारे पाप अपने साथ लेकर जाते है, इसीलिए मृत्यु के समय संत महापुरुषों की अत्यंत पीड़ादायक मृत्यु होती है। सदगुरु तो शारीरिक बंधनों से भी पार होते हैं, परंतु लोगों की तकलीफें वे अपने शरीर के ऊपर लेते हैं। सदगुरु पृथ्वी पर और पृथ्वी वासियों पर अनंत उपकार करते है इसीलिए ऐसे महापुरुषों की कदर करनी चाहिए। ऐसे महापुरुषों को सदा नमस्कार करना चाहिए।
ॐ श्री परमहंसाय नमः