💫तुम अलख निरंजन ईश्वर हो, तुम सूरज हो दिन रात नहीं तुम सदा एकरस हो जानो, जाड़ा गर्मी बरसात नहीं । अद्वैत सभी कहते जिसको, वह तुम ही तुम ही तो अहो। अद्वैतं शरणं गच्छामि, अवधूतं शरणं गच्छामि ।।💫
‘अलख निरंजन’ क्या है?
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दत्तात्रेय भगवान का एक प्रचलित जयघोष है ‘अलख निरंजन’
अंजन से तात्पर्य अज्ञान से लिया जाता है। अज्ञान का नष्ट होना यानी
निरंजन होना इसलिए निरंजन का अर्थ है अज्ञान की कालिमा से मुक्त होकर ज्ञान में प्रवेश करना।
“लक्ष” का तात्पर्य देख पाने की शक्ति से है। “अलक्ष” यानी ऐसा जिसे हम सब सामान्य नेत्रों से देख ही न पाएं। सामान्य बुद्धि जिसे समझ ही न पाए। वह इतना चमकीला इतना तेजस्वी है कि उसे देख पाना सहज संभव नहीं ।
अलख का अर्थ है अगोचर, जो देखा न जा सके।
निरंजन परमात्मा को कहते हैं
। ‘अलख निरंजन’ का अर्थ यह भी हुआ- परमात्मा जिन्हें देखा न जा सके पर सब जगह व्याप्त हैं। 🪷- अलख निरंजन गुरु गोरखनाथ द्वारा प्रचारित ईश्वर को स्मरण करने के शब्द हैं। 🪷
निरंजन क्या है- दत्तात्रेय भगवान का जयघोष है ‘अलख निरंजन’
(अलख निरंजन) एक शब्द है जिसका उपयोग नाथ योगियों द्वारा सृष्टिकर्ता के पर्याय के रूप में किया जाता है, और भगवान और स्वयं की विशेषताओं का वर्णन करने के लिए किया जाता है, जिसे आत्मान के रूप में जाना जाता है । अलख का अर्थ है “वह जिसे देखा नहीं जा सकता” और निरंजन का अर्थ है “वह जो रंगहीन हो” ।
मूल संस्कृत शब्द अलक्ष्य का अर्थ है “जिसे देखा नहीं जा सकता”
‘अलख निरंजन ‘मूलत: गोरखनाथ के शब्द माने जाते हैं, जो नाथ सम्प्रदाय के अनुयायियों और अन्य साधु-संतों द्वारा समाज में जागरण व धर्म के प्रचार – प्रसार के लिए घर- घर जाकर बोले जाते रहे।
अलख शब्द अलक्ष का अपभ्रंश रूप है जिसका अर्थ है – जिसे देखा ना
जा सके (ते दिव्य प्रकाश, परमशक्ति), अंजन अर्थात अज्ञान। इस प्रकार निरंजन का अर्थ हुआ- अज्ञानता नष्ट होना। तो इस प्रकार अलख निरंजन का भाव हुआ- परमात्म ज्ञान का ऐसा दिव्य तेज प्रकाश जिसे देख पाना संभव न होते हुए भी उससे अंतरात्मा के साथ साक्षात्कार करना।

सेल्फ अवेकनिंग मिशन
शालिनी साही

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