अनहद नाद, अनहद ध्वनि के साथ यात्रा करने के लिए हमें बहिर्मुखता से थोड़ा अंतर्मुख होना होगा। अनहद की यात्रा यह एक खुद से खुद के मिलने की यात्रा है। यह खुद खुद में खो जाने की यात्रा है।
अनहद नाद एक ऐसा ध्वनि हैं जो समस्त ब्रह्मांड में दिन-रात गुंज रहा है। और ब्रम्हांड के एक हिस्से होने के नाते हमारे भीतर भी अपनी आप दिन-रात गुंजता है। यह अनहद हमारा अस्तित्व है, यही ओंकार है।
“ओंकार स्वरूपा सदगुरु समर्था”
यह सदगुरु का भजन हम सुनते हैं ना! तो यह ओंकार है, यह परमात्मा है, यह सदगुरु है।
यह नाद वैसे तो सबके भीतर चल रहा है पर यह सदगुरु कृपा से तुरंत शुरू होता है। यह जो नाद है यह ब्रह्म है। यह योगियों को, साधकों और भक्तों को भक्ति की उच्चतम अवस्था में बहुत ज्यादा सुनाई देता है। और इसे शांत चित्त से अंतर्मुख होकर दाहिने कान से सुना जाता है।

अगर आप के भीतर भी अनहद नाद शुरू होता है तो परमात्मा का, अपने सदगुरु का धन्यवाद करना, और इसे सुनते जाना। भीतर नाद का शुरू होना यह परमात्मा की बहुत बड़ी कृपा होती है। यह मुक्ति दाता हैं। यह अनहद हमें व्यर्थ के विचारों से मुक्ति देता है, हमे शुन्यता में स्थापित करता है। यह अनहद हमे स्वयं से मिलाता है। और इसे हर समय सुना जा सकता है। दाहिने कान की ओर ध्यान दे और सुनें।
श्वास प्रश्वास की साधना से, गुरु मंत्र के जाप, अजंपा-जाप से भीतर अनहद नाद शुरू होता है। हमने भी इसे गुरुदीक्षा के बाद गुरुकृपा से ही सुना।
जब यह गुंजता है तो दिन-रात लगातार गुंजता रहता है। अनहद नाद के साथ यात्रा करने के लिए कुछ करना नहीं पड़ता, हमें बस केवल भीतर मुड़ना है और और अपने दाहिने कान की ओर ध्यान लगाना है।

अनहद ध्वनि यह एक रहस्यमय ध्वनि हैं। इसे शब्द ब्रह्म कहते हैं। यह शुरू शुरू में झीन-झीन या किन-किन ऐसी झिंगुर की आवाज जैसी सुनाई देती है। और जब हम उसपर ध्यान देते हैं तो आगे चलकर कुछ घंटों में या एखाद दिन में अलग-अलग आवाज जैसे बांसुरी, ढोलक, मृदंग, झांझ, मंजीरा वगैरह आवाजों में सुनाई देता है।
लगभग लोगों के भीतर का यह नाद गुरुदीक्षा के बाद ही शुरू होता है। वह वैसे भी हमारे भीतर पहले से होता ही है, पर गुरुदीक्षा के बाद गुरु की कृपा और शक्ती से जोर से सुनाई देता है।
अनहद नाद के साथ यात्रा करना, अनहद नाद पर ध्यान लगाना यह परमात्मा से संबंध स्थापित करना है। भीतर नाद का शुरू होना मतलब भीतर परमात्मा का प्रकट होना है।
अखंड ब्रह्मांड में, और भीतर बजने वाली यह ध्वनि यही सच्चा ओंकार है। यह कन कन मे बसने वाले कृष्ण परमात्मा की बांसुरी है ऐसा हम इसे कह सकते हैं। यह अनहद ध्वनि परमात्मा की आवाज है। इसे सुनना, इस पर ध्यान लगाना यह परमात्मा से एकाकार होने की एक बहुत आसान विधि है।
अनहद ध्वनि मनुष्य को मुक्ति प्रदान करने वालीं है, अनहद ध्वनि परमात्मा है। इसे नित्य सुननें से व्यक्ति विचारों से मुक्त होता जाता है, मुक्त होता जाता है। इसलिए इसे मुक्ति दाता भी कहते हैं।
धन्यवाद!