आत्मा के मुक्त होने के बाद का जन्म किस कर्म के आधार पर होता है?
आत्मा अगर मुक्ति प्राप्त कर लेती है तो इसका सीधा मतलब ही यही है कि उसके सभी कर्म अब नष्ट हो चुके हैं। कर्म याने पाप और पुण्य दोनो से पार हो जाना। कर्मतीत होकर ही कोई जीव मुक्त होता है। अतः अब नया जन्म लेने के लिए वह कर्म बंधन से मुक्त है। उसे अगर नया जन्म लेना भी है तो वह परमात्मा या स्वयं की इच्छा जिसमे जन कल्याण की भावना निहित हो और बाक़ी जीवों के उद्धार हेतु ही वह जन्म लेते हैं।
सभी ईश्वरीय अवतार इसी प्रकार जन्म लेते हैं, वो स्वयं मुक्त होते हैं यानी परमात्मा का ही रूप होते हैं। वे सिर्फ अनीति, अत्याचार, अन्याय और पाप जब धरती पर बढ़ जाते हैं तब संसार के कल्याण हेतु मानव तन लेकर आते हैं। और लीला करते हैं।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिः भवति भारत, अभ्युत्थानमधर्मस्य तदा आत्मानं सृजामि अहम् | परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुस्-कृताम्, धर्म-संस्थापन-अर्थाय सम्भवामि युगे युगे ||
भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि धरती पर जब–जब धर्म की हानी होती है, और अधर्म बढ़ता है, तब–तब मैं धरती पर सबके उद्धार के लिए अवतरित होता हूं।
अतः मुक्त या बुद्धतत्व को प्राप्त जीव का अलग अस्तित्व नहीं रह जाता, वह अपनी मौज वश संसार में आते हैं ना किसी कर्म बंधन के कारण।