एंजेल्स यानी देवदूत, धरती पर के देवी-देवता। अगर हम देवताओं जैसा, निस्वार्थ प्रेम-भाव, सेवाभाव, देनेवाला स्वभाव रखते हैं, अगर हम परमात्मा को, हमारे अपने सद्गुरु भगवान जी को हम पर गर्व हो ऐसा आचरण व्यवहार रखतें हैं, तो हम सब ख़ुद एंजेल्स ही है।

पृथ्वी पर की सभी मनुष्य शरीरों में मौजूद आत्माओं के कल्याण कराने हेतु, उन्हें सही मार्गदर्शन कराने हेतु, उनकी अध्यात्मिक उन्नति में सहायता करने हेतु, उनकी समस्याओं का समाधान कराने हेतु अदृश्य रूप में जन्म के साथ से ही दो एंजेल हमारे साथ होते हैं। और, और अनेक एंजेल्स या देवी-देवता भी हमारे साथ, हमारे आस-पास होते हैं।

पिछले जीवन में या उसके भी पिछले जीवन में जो भी आपके इष्ट रहें हो, वे इस जन्म में आपके एंजेल हो सकतें हैं। क्योंकि पिछले जीवन को हम भूल जाते हैं, लेकिन वे अभी भी हमे जानते हैं और इस जन्म में भी हमारे आत्मकल्याण के लिए हमारी सहायता करतें रहते हैं।

वे इतने प्यारे निष्पक्ष, निष्पाप होते हैं की जब भी हम उन्हें बुलाते हैं, उनसे प्रार्थना करते हैं तो वे सुनते हैं, और आ जातें हैं। हमारे अंदर की आवाज, हमारे अवचेतन मन की आवाज इन एंजेल्स की आवाज होती है। एंजेल्स हमेशा हमे हमारे भीतर से, या कुछ अन्य संकेतों से सही ग़लत का मेसेज देते रहते हैं।

एंजेल्स यानी हमारे स्पिरिट गाइड, हमारे आत्मा के, हमारे आत्मकल्याण के मार्गदर्शक, जन्म से हमेशा हमारे साथ रहने वाले हमारे शुभचिंतक अदृश्य गुरु ही समझों।

दृश्य जगत जो हमें खुलीं आंखों से दिखता है, अदृश्य जगत इससे कहीं गुना ज्यादा बड़ा है।एंजेलिक दुनिया भौतिक दुनिया से बिल्कुल अलग है।‌ एंजेल्स हमे देख पाते हैं, सुन पाते हैं। लेकिन कुछ लोगों को छोड़कर बाकी लगभग लोग एंजेल्स के बारे में नहीं जानते।

एंजेल्स को सुनने के लिए, उन्हें अपने आस-पास महसूस करने के लिए, उनके भेजें मेसेजस को समझने के लिए हमें थोड़ा तो अंतर्मुख होना होगा। शांत मन व्यक्ति एंजेल्स को पहचान लेते हैं, उनकी तरफ से आएं हुए मेसेज को भी पकड़ पाते हैं।

एंजेल्स के मार्गदर्शन में मनुष्य जीवन को सही दिशा मिलती है। जब-तक पूर्ण गुरु की प्राप्ति नहीं होती, यह एंजेल ही हमारे गुरु होते हैं।

गुरु तत्व की, अध्यात्मिक उंची अवस्थाओं में ज़ीने वाली अनेकों हस्तीया धरती पर की एंजेल्स होती है। भगवान गणपति बाप्पा एंजेल है। मां पृथ्वी माता भी एक एंजेल है। मैं मां पृथ्वी माता को महसूस कर पाता हूं।

भगवान दत्तात्रेय जी सगुण साकार सृष्टि के तारणहार है। ब्रह्म विष्णु शिव स्वरूपा है।‌ जीवन-मुक्त परमहंस योगी है। और फिर भी अध्यात्मिक साधकों के लिए वे एक एंजेल है।

भगवान दत्तात्रेय जी का आज़ भी अनेकों सच्चे साधकों को, सरल और ईश्वर समर्पित लोगों को दर्शन होता है। अध्यात्मिक साधकों के लिए उनसे भीतर से मेसेज या दृष्टांत मिलते रहते हैं।

भगवान दत्तात्रेय जी का दर्शन या दृष्टांत मिलने के बाद अध्यात्मिक साधक अपनी साधना में तेजी से आगे बढ़ते हैं।

भगवान दत्तात्रेय जी के दर्शन, दृष्टांत या कोई मेसेज मिलने के बाद साधक अपने साकार सद्गुरु की अनन्य भक्ति, अपने साकार सद्गुरु से अनन्य प्रेम करने लगते हैं।

हनुमान जी संतों के, संतों जैसे लोगों के और जो भी उन्हें प्रेम से याद करें उन सभी लोगों के एंजेल है। संतों और सच्चे साधकों को, श्रीराम जी के सच्चे भक्तों को हनुमान जी के दर्शन होते हैं।

जो लोग भी साधना शुरूआत करते हैं, हनुमान जी सब जानते हैं। वे शुरू शुरू में कभी कभी किसी को डराते भी है। सालासर बालाजी भगवान जी की जो मुर्ती है, हनुमानजी ठीक वैसे ही दिखते हैं। संतों और सच्चे साधकों की हनुमानजी रक्षा करतें हैं। हनुमान जी संतों के लिए एक बच्चे जैसे है।

भगवान दत्तात्रेय जी में और हमारे परमहंस सदगुरु भगवान जी में कोई फर्क नहीं है। परमहंस मतलब जीवन-मुक्त आत्मा। भगवान दत्तात्रेय जी सृष्टि के कारण भी है और परमहंस योगी भी है।

कोई भी पुर्ण सदगुरु हमेशा विष्णु स्वरूपा होते हैं। मेरे सद्गुरु भी विष्णु स्वरूपा हैं और हम गुरुमुखों के लिए वे एंजेल है। एक हजार किलोमीटर की दूरी पर रहते हुए भी हमें रोज उनसे सही ग़लत पर मार्गदर्शन मिलता है। भीतर से सही ग़लत की प्रेरणा मिलती है। उनके आवाज़ को हमारे भीतर से ही हम पकड़ पाते हैं, सुन पाते हैं। पुर्ण सद्गुरु गुरुदिक्षा के बाद हमेशा हमारे आत्मा में स्थित होते हैं।

हमारे सद्गुरु जब हमे मिलने आतें हैं, तो तब दिव्य चंदन की खुशबू आतीं हैं। जब सद्गुरु मिलने आतें हैं, या हमारे पास होते हैं, तो ऐसा लगता है की हमारे नथुनों में चंदन की शीशी रख दि हो। वह खुशबू अगरबत्ती या बाहरी सेंट की बोतलों की नहीं होती।

जहां आसपास कुछ भी नहीं है, और अचानक से अप्रतिम अनोखी सुगंधी, जो धरती पर कही भी, कीसी भी स्टोर में नहीं ना मिलती हों। ऐसी सुगंधी का आना एंजेल्स या देवी-देवताओं के हमारे पास में होने की निशानी होती है।

मा सरस्वती भी एक एंजेल है। सत्य साधकों को मां सरस्वती का भी आशिर्वाद मिलता रहता है। बहुत से अध्यात्मिक साधक आगे चलकर लेखक या कवि बनते हैं, यह गुरुभक्ति के कारण मां सरस्वती जी का ही आशिर्वाद होता है।

जहां सद्गुरु होते हैं, वहां मां सरस्वती भी विद्यमान होती है।‌ जहां सद्गुरु होते हैं, पृथ्वी पर के लगभग सभी देवी-देवता अदृश्य रूप में सद्गुरु जी के आस-पास मौजूद होते हैं।

दोस्तों! यह सत्य बात है, की एक सद्गुरु भक्ति से सबकुछ साध्य होता है।‌ गुरु आराधना, सच्ची सच्ची गुरुभक्ति, सद्गुरु से सच्चा प्रेम कर लेना चाहिए। एक सद्गुरु से सच्चा प्रेम कर लेने से हमें सभी एंजेल्स अनुकूल होते हैं। हमारी सहायता करने लगते हैं, अपने पास और साथ होने का एहसास दिलाते हैं।‌

साल 1999 मे जब पहली बार मुझे हनुमानजी के दर्शन हुए तो मैं भी डर गया था। हमारे गांव के एक छोटे से कमरे में मेरी नामसाधना चल रही थी और तभी मेरे सामने के दिवार पर उनकी आकृति प्रकट हुई। वे सालासर बालाजी भगवान जैसे दिखते हैं। और देखते ही देखते कुछ ही सेकंड में वह आकृति अदृश्य हो गयी।

सप्त चिरंजीवी की जो हम बात करते हैं, वे सभी धरती पर एंजेल्स के रुप में कार्य करते हैं। जगत कल्याण मे सहायता करते हैं, हम उन्हें बुलाएं तो आतें हैं।‌ उन्हें पुकारने का, उनसे बात करने का एक तरीका है, प्रार्थना। सच्चे अध्यात्मिक साधकों के लिए, गुरुमुखों के लिए अपने सद्गुरु ही एंजेल होते हैं और सदगुरु ही देवी देवता। हमे पुर्ण सदगुरु की शरण प्राप्त होने पर, हमारे साथ रहने वाले, हमारा कल्याण चाहने वाले एंजेल निश्चित हो जातें हैं।

संकट के समय एंजेल्स को प्रार्थना करना और अपने जीवन में सरलता, सत्यता लाना। जिसके जीवन में सत्यता है, जो सरल है, एंजेल्स उनकी सहायता करते हैं।

कामी क्रोधी लालची लोगों में एंजेल्स को कोई इन्ट्रेस्ट नहीं रहता, एंजेल्स निश्षाप लोगों के लिए कार्य करने हेतु हमेशा तैयार रहते हैं।

आप एंजेल्स की आराधना करों या ना करों, उन्हें मानों या न मानों, अगर आप भीतर से अच्छे हैं, आप के स्वभाव में दया है, करुणा और त्याग है।आपके भीतर समभाव और सरलता है तो एंजेल्स अपने होने का एहसास दिलाते हैं और न बुलाने पर भी हमारी सहायता करते हैं।

हमारी एंजेल बनने की तैयारी गुरुभक्ति से होती है, पुर्ण आत्मज्ञानी सद्गुरु प्राप्ति के बाद होती है।‌‌ जब-तक हमारे भीतर विवेक ज्ञान वैराग्य का जन्म नहीं होता, हम एंजेल नहीं बन सकते।‌

देवता बनने के लिए हमें सद्गुरु से ज्ञान प्राप्त करके जो भी हमारे पास है, वह थोड़ा बहुत देने वाला बनना होगा।

निर्मल चित्त वाले, विवेक और वैराग्यवान, सेवाभावी, परोपकारी-मददगार वृत्ति वाले लोगों को एंजेल्स की दुनिया में भेजा जाता है, एंजेल्स बना दिया जाता है।

एंजेल्स भी धरती पर कभी हमारे जैसे इंसान के रुप में रह चुके हैं। जो लोग मनुष्य चोला पहनने के बाद सद्गुरु की शरण में जातें हैं, मां सरस्वती की उपासना करते हैं, मतलब विद्या की उपासना करते हैं। ब्रह्म विद्या, आत्मविद्या सीखते हैं। सद्गुरु मार्गदर्शन में ब्रह्मविद्या का, आत्मविद्या का अभ्यास करते हैं। और फिर उस सीखी हुई आत्मविद्या से पहले अपना स्वयं का और फिर अन्य लोगों का भी कल्याण करने का प्रयास करते हैं। जो सदाचार और सदा सेवाभाव को अपनाते हैं, परोपकार करते रहते हैं, वे शरीर के मृत्यु के बाद एंजेल्स बनते हैं।
धन्यवाद!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *