जैसे पुराने कपड़ों को त्यागकर मनुष्य दुसरे नये कपड़े पहनता है, ठीक वैसे ही एक शरीर के मृत्यु के बाद आत्मा दुसरा नया शरीर धारण करती है। लेकिन इसमें सभी आत्माएं स्वतंत्र नहीं होती।
आत्मा का पुराने शरीर को त्यागकर एक नये दुसरे शरीर को चुनना सर्वथा उसके कर्मों के अधीन होता है। जैसे कर्म वैसी गति के अनुसार जैसे उसके कर्म होंगे, प्रकृति की तरफ़ से अगले जन्म में उसे वैसी ड्रेस यानी वैसा ही शरीर मिलेगा।
किसी भी व्यक्ति का पुनजन्म, उसका नये शरीर में प्रवेश करना उसके जीवन भर के कर्म, उसके पिछले जीवन के भी कुछ संचित कर्म, उसकी मृत्यु समय की मनःस्थिति, मृत्यु समय उसके भीतर की इच्छाएं इन सब का मिलाप होता है। इन सबका जो हिसाब-किताब आता है, उससे उसका आगे का शरीर, उसकी आगे की गति और स्थिति तय होती है।
हमारा एक जन्म दुसरे जन्म का कारण बनता है, खास करके मनुष्य जन्म। इस एक मनुष्य जीवन में किए हुए अनैतिक, ग़लत कर्म जिन्हें शास्त्रों ने नाकारा है, मनुष्यों को अनेक जन्मों तक भटकाते है।
और इस एक मनुष्य जन्म में किए हुए सत्कर्म उसे देवताओं जैसी गति प्रदान करते हैं। दोबारा मनुष्य जन्म की प्राप्ति करा सकते हैं।
इस एक मनुष्य जन्म में अनासक्त होकर निश्काम भाव से किए गए कर्म मनुष्यों को मुक्ति भी दे सकते हैं। बार बार शरीर बदलने के झंझटों से छुटकारा दे सकते हैं। भविष्य में आनेवाले अनेकों दुःखों से मुक्त कर सकते हैं। चाहे कोई भी हो उसके कर्म ही निर्भर करेंगे की उसकी आगे की गति क्या होगी।
इस ब्रम्हांड में एक ईश्वर नामक अचुक अदृश्य कंप्यूटर काम करता है, और यह सब बिल्कुल अचुकता से होता है। कुछ आत्मज्ञानी अध्यात्मिक ऊंची अवस्था वालीं आत्माओं की बात अलग है। लेकिन आम आत्माएं खुद अपना शरीर नहीं चुनती, उनके कर्म ही उनका शरीर चुनते हैं।
हर व्यक्ति के कर्मों का एक कार्मिक शरीर बनता है और वह कार्मिक शरीर ही उस आत्मा को उसके कर्मों के हिसाब से गति देता रहता है।
प्रकृति में यमराज न होकर सब जगहों पर नियमराज है, प्रकृति नियमों से चलती है। हर एक व्यक्ति के भीतर चित्त में चित्रगुप्त बसा हुआ है। अदृश्य कंप्यूटर परमात्मा और मां प्रकृति के नियमानुसार, मृत्यु के बाद मनुष्य को उसके कर्मों के अनुकूल शरीर मिलता है। सब अपनी आप ही होता है कुछ करना नहीं पड़ता।
यहां प्रकृति और परमात्मा के राज़ में अपना मनचाहा शरीर चुनना या ना चुनने का अधिकार केवल आत्मज्ञानी महासंतो को, परमहंसों को होता है, आम आत्माओं को नहीं।
धन्यवाद!