ध्यान में मृत्यु होगा तो अच्छा ही होगा, जीव का हमेशा के लिए कल्याण होगा। जनम जनम से परमात्मा से बिछड़ा, दुःखी जीव जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाएगा।

लेकिन ऐसा होता नहीं है, उसके लिए कर्मों का खाता बिल्कुल क्लियर होना चाहिए।

योगी तपस्वी लोग ऐसे मृत्यु की कामना करते हैं, ध्यान में परमात्मा से एकाकार होने के बाद मृत्यु हो ऐसी परमात्मा से प्रार्थना करते हैं।

उच्च कोटि के योगी, संन्यासी, तपस्वी जीवन जीने वाले संत महात्मा जन ऐसे मृत्यु की कामना करते हैं। वे कहते हैं कि, हे मृत्यु तुम जब आना हो तब आना, बस समाधि मरण बनकर आना।

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समाधि मरण, गहरे ध्यान में मृत्यु का आना बड़ी सौभाग्य की बात होती है। ध्यान की उच्च अवस्था में आयीं हुई मृत्यु मनुष्य को मोक्ष तक प्रदान कर कर सकती है।

जब साधक अपने इष्टदेव या सदगुरुदेव जी के ध्यान में लीन होता है, तब उसे बाह्य प्रकृति का, अपने बाह्य अस्तित्व का बोध नहीं रहता। ध्यान में लीन व्यक्ति चैतन्य स्वरूप में होता है। और अगर ऐसे में उसकी मृत्यु होती है, तो वह चैतन्य स्वरूप परमात्मा में विलीन हो जाएगा। हमारे मनुष्य जीवन का मुख्य उद्देश्य भी तो यही है चैतन्य स्वरूप परमात्मा में विलीन होना।

ध्यान की निर्विचार निर्विकार शुन्य चेतन साक्षी अवस्था में हुई मृत्यु मोक्षदायिनी होती है।

अपने ईश्वर, इष्टदेव या सदगुरुदेव भगवान जी के ध्यान में अपने नश्वर देह का त्याग होना यह सीधे सीधे उनसे जाकर मिलना है। और इससे बड़ी सौभाग्य की बात और क्या हो सकतीं हैं।

जीवन के अंतिम समय में ध्यान लगाकर या ध्यान में मृत्यु होना यह बहुत ही सौभाग्य की बात होती है। जिनकी भी ध्यान में मृत्यु होती है, उनपर परमात्मा की बहुत बड़ी कृपा होती है।

गहरे ध्यान में जो मृत्यु होती है, उसे समाधि मरण कहते हैं। समाधि मरण श्रेष्ठ मरण है। मृत्यु समय भीतर मैं परम् पवित्र आत्मा हुं की याद बनी रहे, और तब प्राण छूटे तो वह समाधि मरण कहलाता है।

भाग्यशाली होते हैं वे लोग जो मैं शुद्ध हुं, बुद्ध हूं, परम् पवित्र आत्मा हूं, मैं तो चेतन साक्षी स्वरूप आत्मा हूं की अवस्था में प्राण छोड़ते हैं, और सीधे सीधे मोक्ष में चलें जातें हैं। हमेशा के लिए सुखी हो जातें हैं।
धन्यवाद!

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