परमात्मा का नाम जाप जो हम करते हैं, या कोई गुरु, कोई संत-महापुरुष हमे परमात्मा का नाम जाप करने को कहते हैं, तो वह मन शांत, स्थिर, निर्विचार करने के लिए ही कहते हैं।

अध्यात्म की सभी साधनाएं मन को शांत करने के लिए ही की जाती है। संसार में कम और समाधि में ज्यादा, यानी निरंतर ध्यान करने वाले महात्मा के सीवा बाकी सभी के भीतर कोई न कोई विचार चलते रहते हैं। बस किसी के कम तो किसी के ज्यादा, किसी के सकारात्मक तो किसी के नकारात्मक विचार होते हैं।

विचार आएंगे, क्योंकि विचारों से तो मन बनता है। विचारों के बिना मन का कोई अस्तित्व नहीं होता। विचारों के हटते ही आत्मसाक्षात्कार होता है। विचारों के हटते ही आत्मा प्रकट होती है। मतलब आत्मा पहले से ही होती है, पर विचारों के कारण उसका अनुभव नहीं होता। और उसके उपर की विचारों की परत हटते ही हमे सर्व व्यापक, साक्षी, स्थिर, शांत सुखस्वरूप आत्मा के होने का अनुभव होता है।

विचार तो आएंगे, क्योंकि अब-तक इतना सारा देखा सुना और महसूस जो किया है। अब-तक इतना स्पर्श और टेस्ट जो किया है। आजतक इतने सारे कर्म जो घटित हुएं हैं।
कभी कभी बहुत ज्यादा विचारों का कारण डर, अपराधी भावना, प्रेम में या बिज़नस में असफलता होती है। कम आत्मसम्मान बेरोज़गारी, बिमारी या कोई क्रिटिकल मुद्दा, अपमान भी बहुत ज्यादा विचारों का कारण बनता है। यह जो संसार है यह समस्याओं का घर है, यहां समस्याएं और विचार दोनों रहेंगे।

विचारों से डरें नहीं। विचार एकदम से शांत नहीं होते। विचार शांत करने के चक्कर में वें और ज्यादा बढ़ते हैं। विचारों पर धीरे-धीरे काबू पाया जा सकता है। मन पर नियंत्रण करने का प्रयास छोड़कर किसी अच्छे कार्य में मन लगाकर रखने से विचार कम होते हैं।

विचारों को हटाने के लिए सबसे पहले तो ध्यान मेडिटेशन करने की आदत डाले। अपना मन संसार से थोड़ा हटाकर परमात्मा में लगाएं। अपने पसंदीदा परमात्मा के किसी एक नाम का जाप-सुमिरन करें।

दुसरा एक्सरसाइज करें, तेढा मेढा जैसा भी आता है डांस भी कर सकते है।

जब हम खुश होते हैं तो विचार भी बहुत कम आते हैं। विचारों को कम करने का खुशी एक रसायन है। तो खुश रहने का प्रयास करें। बच्चों के साथ खेलना और बुढो के साथ बाते करने की आदत डाले।

खुद से प्रेम करें। कुछ अच्छा मनपसंद बनाकर खाएं, विचार बहुत कम आएंगे और आप खुश भी रहेंगे। ट्राय करके देखे।

सही, पसंदीदा कार्यों में व्यस्त रहें। पहले सही, अपना पसंदीदा काम चुने और उसे पुरा करने का जुनून भरे, उस पर ध्यान लगाएं। उससे सफलता भी मिलेगी। सफलता के कारण आनंद आएगा और विचार भी खत्म होंगे।

गहरी श्वासे ले। रेचक कुंभक करें। रेचक और कुंभक करते वक्त अफर्मेशन्स के द्वारा उसमें वह सकारात्मक पैटर्न भरे जो आप चाहते हैं। विपश्यना मेडिटेशन, विचार शुन्यता ध्यान इसके उपर रामबाण इलाज है।

भई बहुत ज्यादा सोचने की आदत से बाहर आने के लिए गंभीरता पूर्वक सोचना भी होगा, और खुद को स्ट्रांग बनाना भी होगा। क्योंकि बहुत ज्यादा सोचना भी एक मानसिक कमज़ोरी है।

मन अर्थात विचारों का समूह, जो हमेशा बिना थके कोई ना कोई विचार लिए रहता है। विचारों का होना ही मन का अस्तित्व है बिना विचार मन होता ही नही, फिर वह ध्यान की अवस्था कहलाती है। अब विचार सकारात्मक और नकारात्मक दोनो तरह के होते हैं। हमारा अपने विचारों पर नियंत्रण नही होता इसलिए हम परेशान हो जाते हैं। मन एक साधन है भवसागर से पार उतरने का, जैसे मन रूपी नाव में यदि हमे उसे खेना आता है तो वही नदी पार करा देती है, लेकिन नाविक को नाव चलाना नही आने पर वही नाव उसे डूबा देती है। अब इसमें नाव का कोई दोष नही है, दोष हमारा है हमे कुशल होने की जरूरत है। जीवन रूपी नदी को पार करने के लिए नाव का अच्छा खेवैया बनना पड़ेगा। तो यही सबसे अच्छा साधन बन जाता है। अतः सकारात्मक विचार मन को बल देते हैं उससे आत्मा को भी बल मिलता है।

अतः नकारात्मक विचारों की जगह उसे सकारात्मक विचारों से पोषित करना होगा, जिससे यह पर उतरने में सहायक हो सके और हम डूबने से बच जाएं।

अतः नकारात्मक विचारों से दूर रहने का उपाय जरूरी है। इसके लिए हम ध्यान का सहारा ले सकते हैं। ध्यान आपको निर्विचार कर देता है, और हम अपनी वास्तविक सच्चिदानंद स्वरुप में स्थिर हो जाते हैं। इसके अलावा प्राणायाम, योगासन, उचित वातावरण का चुनाव, सही खान–पान से भी मन शांत होता है। अच्छे कार्यों में लगे रहे, खुद को व्यस्त, पॉजिटिव लोगों के बीच रहें, हर परिस्थिति में उसके सकारात्मक पहलू को देखें। सोचें कि सबका एक दिन अन्त होना ही है तो फिर क्यों ना खुद के लिए और संसार के लिए कुछ अच्छा कर जाएं।

सबके हित में अपना हित देखें, तो निश्चित ही आपका भी कल्याण हो होगा। और मन को पवित्र रखने का पूरा प्रयास करें क्योंकि पवित्र हृदय ही प्रभु निवास करते हैं। अपने अवगुणों पर ध्यान दें उसे दूर करें। सद्गुणों से खुद को संवारने का प्रयास करें। शारीरिक और मानसिक मजबूती और पवित्रता के साथ जीवन जिएं। समय एक सा नहीं रहता समझे और ज्ञान और समझ, विवेक का विकास करें। सत्कर्म, भक्ति, ईश्वर या गुरु पर आस्था, आध्यात्मिक जीवन, पवित्र आचरण रखें।
इन सब उपायों से निश्चित ही जीवन सकारात्मक विचारों से पूर्ण हो जायेगा।

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