कर्म का सिध्दांत कहता है कि जो बोयेगा वहीं काटेगा। उसमें पति पत्नी या बेटा बेटी हिस्सेदार नहीं होते। लेकिन अगर कर्म करते वक्त आप हिस्सेदार हुए हो तो काटते वक्त भी आप हिस्सेदार होंगे जरुर।

मां-बाप के कर्म और बच्चे का भविष्य का ऐसा है कि, हमे इस जन्म में जो भी मां-बाप मिलते हैं यह हमारी पिछले कर्मों की सजा या वरदान होता है। हमारे पिछले कर्म जैसे रहे हों हमे वेसे ही मां-बाप की प्राप्ति होती है।

आत्मा कर्मों के आधार पर गर्भ या कुल परिवार चुनती है। या प्रकृति की तरफ से उसे वहां ऐसे परिस्थितियों में, ऐसे परिवार में ही ढकेल दिया जाता है। जहां वह उस ढांचे में ठीक बैठता हो।
जैसा हमारा पिछला कर्मों का हिसाब होगा वैसे मां-बाप हमे मिलेंगे और फिर उनका जो अच्छा या बूरा होगा वह हमारा होगा।

एक राजा का बेटा राज़ करता है क्योंकि उसके मां-बाप के कर्म है, लेकिन साथ-साथ केवल उसके मां-बाप के ही कर्म नहीं है, उसका अपना भाग्य भी है।


उसका पुर्व संचित, उसके पुर्व जन्म के पुण्य इतने अच्छे थे की उसे ऐसा राजे शाही परिवार में जन्म मिला। तो इसका मतलब है कि वह उन मां-बाप के जरिए अपने ही कर्मों को भुगत रहा है।

एक भिखारी का बेटा दुःख झेलता क्योंकि उसके मां-बाप भीखारी है। लेकिन उसके आज़ के दुःख झेलने में केवल उसके मां-बाप का ही दोष नहीं है, उसके अपने पिछले कर्म भी है।
पिछले जन्म में वह आवश्य निगुरा रहा होगा। उसने सबकुछ होते हुए भी दान-पुण्य नहीं किया होगा। स्वार्थ वृत्ति से जीया होगा। इसलिए इस जन्म में उसे भीखारी के घर जन्म मिला। अब वह मां-बाप को दोष देता है, लेकिन उसके अपने कर्मों को नहीं जानता।

कर्म अपने ही होते जिन्हें हम भुगतते हैं, लोग केवल कारण बनते हैं। प्रकृति कोई भी चीज़ अपने उपर नही आने देती। प्रकृति बुरे कर्मों की सजा या अच्छे कर्मों का वरदान देने के लिए किसी न किसी को जरिया बनातीं है।

यह खेल अपना ही खेला हुआं है, बस मां-बाप या पति पत्नी इसमें रोल निभाते हैं और लगभग उनके भी हमारे जैसे ही कर्म होते हैं। इसलिए एक-जैसे मिलते-जुलते कर्मों की आत्माएं एक साथ मिलती है।
धन्यवाद!

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