https://youtu.be/DriQxxfkitg
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साधना एक ऐसा साधन है जिससे बंधन मुक्ति बन जाता है। साधना एक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला अनुशासन है। अभ्यास अवलोकन और चिंतन के साथ….🙇🏻‍♀️


ध्यान साधना एक ऐसी अद्भुत विधि है जो हमारे सम्पूर्ण व्यक्तित्व को निखारती है.🧖🏼‍♀️
मन की एकाग्रता से आने वाली शांति को पाने का रास्ता ही ध्यान है और यहीं ध्यान अष्टांग योग के अंतिम चरण में समाधि की अवस्था पा लेता है. ध्यान योग का एक ऐसा महत्वपूर्ण तत्व है जिसके माध्यम से तन, मन और आत्मा के बीच एक सुंदर औयर लयात्मक संबंध का निर्माण होता है. अंग्रेजी में इसे “मेडिटेशन” कहते हैं.
ध्यान चारों दिशाओं में प्रकाश फैलाने वाले बल्ब की तरह है. योगियों का ध्यान सूर्य के प्रकाश की तरह होता है.
साधना कैसे प्रारम्भ करें और उसे पूर्णता की ओर ले जायें।
सर्वप्रथम मंत्र साधक को स्वयं अपने को साधना के लिये तैयार करना चाहिए उसके बाद तब साधना में प्रवृत्त होना चाहिए। साधना प्रारम्भ करने से पूर्व साधना की वस्तुओं को भी संग्रहीत कर लेना चाहिये।
साधक को स्वयं अपने को पहचानना चाहिए और तन-मन से तैयार होना चाहिए। सच्ची साधना के लिये मन तन बुद्धि, हृदय एवं आत्मा की एकाग्रता आवश्यक होती है।
मनुष्य को जो ब्रह्म स्वरूप दिखाई देता है यह अन्नमय स्थूल शरीर है। यह मोह माया तथा विकारों से युक्त होता है। इसे अन्नमय कोश कहते है। अन्नमय कोश के नीचे स्नायु जल है. इसी को मानव कोश कहते हैं। इसी मानव कोश से स्थूल शरीर संचालित होता है। इसी स्नायु जान से मानव जीवन की धाराये प्रवाहित होती है। इससे नीचे प्राणमय कोश है जिसे आनन्द कोश भी कहा जाता है। इस कोश से प्राण वायु का सम्पर्क होता है तो मन आनन्दित होकर हिलोरें मारने लगता है। साधना के लिये कर्ज गति से बड़ा जाता है अर्थात् पहले आनन्द कोश का स्पर्श हो फिर मानव कोश का फिर इस अन्नमय शरीर का अर्थात् साधक–मन, बुद्धि और शरीर से साधना के लिये तैयार हो जाय।
साधना के पूर्व साधक को तन शुद्धि मन शुद्ध करके आसन पर बैठ जाना चाहिए और प्राणायाम करके चित को स्थिर कर सर्वप्रथम गुरु का पूजन करके फिर ईष्ट की पूजा करनी चाहिए।
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शालिनी साही
सेल्फ अवेकनिंग मिशन

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