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कलियुग में किन्नर शब्द से सीधा तात्पर्य मानव की तीसरी प्रजाति से ही लिया जाता है । किन्तु पौराणिक काल में किन्नर ब्रम्हा द्वारा उत्पन्न देवताओं का एक समुदाय था जिसे पुराणों में किन्नरगण कहा गया।

कहा गया है कि जब ब्रम्हा मानसिक सृष्टि सृजन में व्यस्त थे तभी उन्हें एक अतितीव्र जम्हाई आ गयी। इसी जम्हाई से अतिसघन रोमयुक्त शरीरधारी रीछ योद्धा जाम्बवान की उत्पत्ति मानी जाती है। ऐसे अनोखे पुत्र को देखकर ब्रम्हाजी अति आश्चर्यचकित हुए

और अपनी विशालकाय परछाईं की ओर गौर से देखा । पुराणों के मतानुसार उस परछाईं से एक अश्वमुखी वीणाधारी पुरुषपुत्र उत्पन्न हुआ। इसे किन्नरगण के रूप में जाना गया। इनकी स्त्रियों को किन्नरी कहा गया। इन्हें संगीत में प्रवीणता का वरदान हासिल था। यह कुबेर के साथ कैलाश पर्वत पर निवास करते थे। यह युद्ध प्रवीण कुशल योद्धा और शस्त्र सञ्चालन में सिद्धहस्त हुआ करते थे।

देवलोक के किसी भी उत्सव, देवासुर संग्राम में देवताओं की विजय के समय भूलोक पर ईश्वरीय अवतार आदि आदि मौकों पर किन्नर गणों का गायन, वादन, और नृत्य होना माना जाता है। इस कर्मगत समानता के कारण भूलोक के हिजड़ों को कलियुग में शायद किन्नर नाम से जाना गया। एक अन्य मतानुसार इन्हें ऋषि पुलह का वंशज भी माना जाता है। देवताओं की सेवा करने के कारण किन्नरगणों को शुभ आशीर्वाद देने की क्षमता भी प्राप्त हुई।

शालिनी साही
सेल्फ अवेकनिंग मिशन

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