क्या हम इस लायक हो गए हैं कि परमात्मा ने हमे इस धरती पर सेवा के लिए भेजा है? क्या इस जन्म में हमें मुक्ति मिलेगी?
परमात्मा की तरफ से हमे मनुष्य देह मिला है, इसका मतलब यही है कि हम कुछ तो लायक है। परमात्मा ने हमें धरती पर सेवा के लिए और अपने उद्धार के लिए ही भेजा है।
हम मनुष्य आतें वक्त अपना खुद का और साथ ही जगद का कल्याण यही उद्देश्य को लेकर धरतीं पर आतें हैं। मनुष्य देह केवल खुद के स्वार्थ के लिए न होकर इसी कार्य के लिए दिया जाता है।
मनुष्य धरती पर भेजा हुआ परमात्मा का एक दूत हैं। मनुष्य धरती पर का देवता हैं। उसे कुछ न कुछ, अपने से हों सकें जितना अपना ग्यान भी और धन भी लोक सेवा में देते रहना चाहिए।

मनुष्य के उपर परमात्मा ने बहुत सी जिम्मेदारियां सौंपी है। इसमें पहले उसे खुद ज्ञान में जागना है और फिर औरों को भी जगाना है। अन्य सोई हुई मुड़ आत्माओं को अज्ञान अंधेरे से बाहर निकलना है। लेकिन प्यार से, धीरे धीरे।
मनुष्य को इसी जन्म में मुक्ति भी मिल सकती है। बिल्कुल मिल सकती है।
हम अगर परमात्मा के ज्ञान का, ब्रम्हविद्या श्रीमद्भगवद्गीता का अभ्यास करते हैं, हम अगर उपनिषदों का अभ्यास करते हैं। हम अगर गुरुवचनों को ध्यान से सुनते हैं, गुरुवचनों और गुरुशब्द को ह्रदय में उतारते हैं तो यह अभी इसी जन्म में हो सकता है।
गुरुवचनों, उपनिषदों को सुनकर या पढ़कर, श्रीमद्भगवद्गीता का अभ्यास करने से भीतर के ज्ञान कप्पे खुलते हैं। अज्ञान दूर होता है, भीतर ज्ञान प्रकाश, विवेक उत्पन्न होता है। फिर अपनी ग़लतीया, अपनी कमियां, अपनी आसक्तियां दिखने लगती है। मनुष्य जन्म और उसका उद्देश्य समझ आता है। हम कहां अटके हैं, यह भी हम जान जाते हैं।

वैसे देखा जाए तो मनुष्य की मुक्ति बहुत आसान प्रक्रिया है। बस व्यर्थ का सब पकड़ा हुआ हमे छोड़ना है। लेकिन फिर भी छोड़ने में और छूटने में बहुत फर्क है। सदगुरु के ज्ञान से, ब्रम्हविद्या श्रीमद्भगवद्गीता, उपनिषदों के ज्ञान से संसार अपनी आप छूटता है, उसे छोड़ना नहीं पड़ता है। और ऐसे ही सदगुरु और गीता के उपदेश से मनुष्य धीरे धीरे मुक्त होता जाता है।
जिसे भी मुक्ति की, या मोक्ष की भूख लगी है उसके जीवन में सदगुरु और गीता दोनों चाहिए।
धन्यवाद!
