हां! दुनिया का हर सुख दुःख का पूर्वरूप है। और हर दुःख के पिछे सुख छिपा होता है। दुनिया में कोई भी सुख ऐसा नहीं है, जो दुःख से सर्वथा मुक्त हो, और दुनिया का कोई भी दुःख ऐसा नहीं है, जिसमें आगे भविष्य में सुख छिपा न हों।
अपने जीवन में हम पिछे जाकर देखेंगे तो हमें पता चलेगा की, अब-तक हमारे जीवन में जो भी दुःख आए उसमें हमारा हित छिपा हुआ था। हमारी आज़ जो तरक्की हुई है, हम आज़ जो जीवन में आगे बढ़ गए हैं, हम आज़ जो आत्मज्ञान की, परमशांति की अवस्था की ओर बढ़ रहे हैं, यह उन पिछले कुछ दुःखों के कारण ही।
संसार में जन्म और मृत्यु होते रहते हैं, संसार सुख-दुःखमय है, दुःखालय है, सुख दुःखों का मिश्रण है। जब-तक संसार में राग और द्वेष होते रहेंगे सुख दुःख आतें जाते रहेंगे। जब-तक जन्म और मृत्यु होते रहेंगे संसार में सुख दुःख आतें रहेंगे।
काम और कामनाएं मनुष्य को लगी एक भयंकर बीमारियां है। कामनाएं अशांति और दुःख का आपस में बहुत प्यार होता है। कामनाएं अशांति व दुःख एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। जब-तक मनुष्यों में इच्छा-आकांक्षाएं, काम और कामनाएं रहेंगी तब-तक संसार में सुख-दुःख आता रहेगा।
इच्छापूर्ति होने पर या अन्य किसी कारण से मन में जो प्रियतापूर्ण अनुभूति होती है वह सुख हैं, और इच्छापूर्ति न होने पर मन में जो अप्रियतापूर्ण अनुभूति होती है वह दुःख है। यह सुख और दुःख दोनों अस्थिर है, दोनों भी अशांति के रूप है।
दुनिया को अपने भीतर रखने वाला व्यक्ति दुःखी होता है, और दुनिया को अपने बाहर रखने वाला सुखी। सुख और दुःख दोनों भी मन की व्याधियां और तनाव के ही दो अलग-अलग रुप है। सुख सुहावना तनाव है और दुःख असुहावना तनाव। इन सुख और दुःख रुपी दोनों तनावों से मुक्ति ही वास्तविक मुक्ति है, सच्चा सुख है।
द्वैत की अनुभूति में सुख-दुःख का अस्तित्व रहता है और अद्वैत की अनुभूति में, आत्मज्ञान की अनुभूति में सुख-दुःख का पुर्ण अभाव।
अशांति की, सुख-दुख की अनुभूति को ही संसार कहते हैं। यहां दिन के साथ रात, मान के साथ अपमान, स्वास्थ्य के साथ बिमारियां, प्रेम के साथ नफ़रत, जन्म के साथ मृत्यु जुड़े हुए है। ठीक वैसे ही सुख के साथ दुःख भी जुड़ा हुआ है।
जब-तक हम दुनिया मे, संसार में रहेंगे। संसार के व्यवहार में रहेंगे, तब-तक हम सुख और दुःख में झूलते रहेंगे। बहिर्मुखता, व्यवहारिक जीवन सुख-दुःख का झूला झूलने जैसा हैं।
व्यवहारिक जीवन समस्या मुक्त, सुख-दुख से मुक्त नहीं हो सकता। काम और कामनाओं से युक्त विषयी चंचल मन दुःखों की उत्पत्ति करता है। शरीर मन की अनुभूति में, देह के अनुभूति में रहने वाला हमेशा दुःखी रहता है।
अध्यात्म की अनुभूति में, आत्मस्वभाव की अनुभूति में, अपने स्वयं में रहने वाला सुख दुःख से मुक्त। अध्यात्मिक जीवन ही सुख-दुःख से मुक्ति का उपाय है। अध्यात्मिक जीवन में आगे बढ़कर हम सुख दुःख से मुक्त बनकर परम् शांति में जीना सीख जातें हैं।
अतः राग-द्वेष का शमन करों। अपनी आत्मा को जानों। अपने भीतर के बुध्दत्व को जगाओं और अनंत शांति और सुख में लीन हो जाओ। हमेशा के लिए सुख दुःख से पार हो जाओ, हमेशा के लिए सुखी हो जाओ।
धन्यवाद!