क्या शरीर से आत्मा निकल जाने के बाद ,जीवन लीला याद रहती है?

शरीर छोड़ते ही जीव शरीर के बाहर ही उसके आसपास चक्कर लगाते रहता है, क्योंकि उसे अपने शरीर से अलग होने का विश्वास ही नहीं होता। धीरे–धीरे शरीर को जला देने के बाद उसका मोह टूटता है और अपनी यात्रा पर आगे निकल जाता है। लेकिन उसे अपनी यात्रा में आगे यह पुरानी यात्रा याद रहती है।

मृत्यु के बाद जीव को उसके कर्मों का हिसांंब–किताब करने की प्रक्रिया से गुजारा जाता है, इसे लाइफ रिव्यू कहा जाता है। इसमें जीव के साथ उसके इष्ट, गुरु और देवदूत साथ होते हैं और धर्मराज के सामने उसके पूरे जीवन को , उसकी महत्वपूर्ण घटनाओं को सामने फिल्म की तरह दिखाया जाता है। जिसमे उसे उसके कर्मों और भावों को दिखाया जाता है। और जीव ने वो कर्म किए होते हैं इसलिए वह अपने गुनाहों को स्वीकारता है। और उससे ही पूछा जाता है कि इस कर्म की आपको क्या सजा मिलनी चाहिए, और वह खुद माफी मांगता है, और अपने लिए सजा तय करता है।

इसी प्रकार हर कर्म का कोई ना कोई फल अवश्य निर्धारित होता है, और उसे भोगने उसे विभिन्न योनियों में जन्म लेना पड़ता है। और जब वह नए गर्भ में आता है, जैसे मनुष्य योनि में जब वह तक वह गर्भ में रहता है, उसे अपना पूर्व जन्म याद रहता है, और वह अपने किए पर बहुत पछताता है।
वह परमात्मा से वादा करता है कि एक बार इस गर्भ की पीड़ा से मुझे निकालिए भगवान, मैं फिर यह नीच कर्म नहीं करूंगा। और केवल आपके नाम का स्मरण और सत्कर्म करूंगा। तब तक उसे अपना पूर्व जन्म याद होता है।

लेकिन जन्म लेते ही उस पर माया का परदा डाल दिया जाता है, जिससे वह सब ज्ञान, ध्यान और पूरे जन्म की यादें विस्मृत हो जाती है। वह फिर माया के वश में जीवन जीता है, और अपनी पुरानी गलतियों को दोहराता है। इस प्रकार यह चक्र चलते रहता है। चौरासी लाख योनि में इसलिए जीव को भटकना पड़ता है। किंतु जो श्रेष्ठ आत्माएं होती हैं, उन्हे अपने पूर्व जन्मों की याद बनी रहती है। क्योंकि वो किसी निश्चित उद्देश्य के साथ जन्म लेते हैं और अपना कार्य पूरा कर मुक्त हो जाते हैं। ऐसी दिव्य आत्माओं को सब याद रहता है और वे शांति से जग कल्याण हेतु ही आते हैं और अपना कार्य करते हैं।

इसके अलावा साधक ध्यान की गहराई में जाकर भी अपने पूर्व जन्मों को देख सकता है। और अपने जीवन के उद्देश्य को जानकर आत्मज्ञान के रास्ते पर आगे बढ़ता है।

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