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दूसरों का भला कीजिए, आपका कल्याण स्वयं हो जाएगा।🫶
🔆जीवन में सफलता चाहते हैं तो माता-पिता का आदर करें,उन्नति के लिए अपनी कद्र करना सीखें 🔆
🙏 ऐसा हम नहीं हमारे गुरुदेव सिखाते हैं हमें। 🙇🏼♀️
मुझे तो मिल गयें मेरे गुरुदेव । यह सब उन्हीं का विस्तार है और जो दिखता है उससे भी ज्यादा विस्तार है उनका। जहाँ-जहाँ आपकी और मेरी दृष्टि जाती है उससे भी ज्यादा विस्तार है।
अनंत ब्रह्मांड भी उनके एक कोने में पड़े हैं। ऐसे हैं मेरे गुरुदेव !
ऐसे गुरुओं पर कीचड़ उछालने वाले हर युग में रहे, फिर भी गुरु-परम्परा अभी तक बरकरार है। नानकजी को जेल में डाल दिया। कबीरजी पर लांछन लगाया। बुद्ध पर दोषारोपण किया, कुप्रचार किया। करोड़ों हृदय उन्हें आदर से मानते हैं। निंदक और कुप्रचारक अपना ही घाटा करते हैं।
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हमें यह कैसे पता चलेगा कि गुरु की कृपा हम पर है?
आप किसी होटल की लॉबी में होते हैं तो वहाँ, पृष्ठभूमि में, हल्का-हल्का संगीत चल रहा होता है पर क्या आपने ध्यान दिया है कि कुछ समय बाद ये आपके ख्याल में भी नहीं आता, आपको महसूस नहीं होता कि वहाँ कोई संगीत भी है। सिर्फ अगर आप किसी से बातचीत करना चाहें, तो आपको लग सकता है कि वो संगीत बाधा डाल रहा है, वरना वो संगीत तो हमेशा चल ही रहा होता है और आपको पता भी नहीं चलता। ऐसे ही, आपके घर में किसी मशीन की आवाज़, हल्की घरघराहट, आ रही होती है पर आपका ध्यान उस पर तभी जाता है, जब आप घर में घुस रहे होते हैं। इसी तरह, सामान्य रूप से, आपको पता भी नहीं चलता कि आपकी साँस चल रही है पर अगर एक भी मिनिट ये न चले तो आपको पता चलेगा। यही वजह है कि आपको यह पता भी नहीं होता कि दिव्यता का हाथ हमेशा ही आप पर है। भी
जब कोई चीज़ आपके लिये 24 घंटे उपलब्ध हो तो क्या फर्क पड़ेगा अगर आप यह न जानें कि वो है या नहीं? जीवन तो फिर भी चलता रहेगा पर कृपा में होने के अपने आनंद को आप खो देंगे। कृपा कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो आप पर कभी हो और कभी न हो। यह कोई ऐसी बात नहीं है जिस पर आप हर सप्ताहांत में सवाल उठायें। यह तो हर समय है ही। अगर आप इसके बारे में जागरूक रहेंगे तो आपको कृपा में होने के आनंद का पता जरूर चलेगा। मैंने यह बात कई तरीकों से कही है पर मुझे पता है कि आप में से ज्यादातर लोगों ने इस पर ध्यान नहीं दिया है।
अगर आप अपने गुरु के साथ एक पल के लिये भी बैठें तो आपके जीवन में कोई निजीपन नहीं रह जायेगा। जैसे ही आप गुरु के साथ बैठे, खास तौर पर गुरु द्वारा दीक्षित हुए तो फिर कृपा है या नहीं जैसी कोई चीज़ नहीं रह
जायेगी – कृपा हर समय रहेगी ही! कृपा का मतलब यह है कि प्रकाश के लिये कोई बाहरी स्रोत आप नहीं ढूँढते, आप खुद प्रकाश के स्रोत बन जाते हैं। हर समय भले ही इसका अनुभव न हो पर, अगर एक पल के लिये भी आप समझ लें कि आप प्रकाश से भरे हुए हैं तो इसका मतलब है कि आपको कृपा ने छुआ है।अगर इसने आपको एक पल के लिये भी छुआ हो तो, चाहे ये आपके पास वापस लौट कर न भी आये तो भी आपका जीवन पहले जैसा नहीं रहेगा। आप उस एक पल के साथ जुड़े रह सकते हैं और, आसपास के किसी भी व्यक्ति की तुलना में, अपना जीवन बिल्कुल अलग ढंग से जी सकते हैं। अगर ये हर समय आपके साथ है तो इसका वर्णन नहीं किया जा सकता।बात सिर्फ इतनी है कि आपकी उम्मीद यह है कि कृपा के द्वारा आपकी सारी इच्छायें, योजनायें पूरी हो जायें। आपकी यह वही पुरानी आदत है कि मंदिर या चर्च जा कर भगवान से कहते हैं कि आपके लिये उसको यह या वह चीज़ जरूर करनी चाहिये। अगर वो ऐसा न करे तो आप अपने भगवान ही बदल देते हैं। कृपा का काम आपकी छोटी मोटी इच्छायें, योजनायें पूरी करना नहीं है। वैसे भी आपकी योजनायें हर समय बदलती रहती हैं। अपने जीवन में, अलग अलग समय पर, आप सोचते थे, “यही सबकुछ है” और फिर, अगले ही मिनिट में उसे बदल देते थे। आप छुट्टी मनाने जाना चाहते हैं, तो पूछते हैं, “सतगुरु”, आप मेरी मदद क्यों नहीं करते”? तो, हर दूसरे दिन यह मत पूछते रहिये, “क्या कृपा मेरे साथ है”?
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किसी गुरु की कृपा आपकी योजनायें पूरी करने के लिये नहीं होती गुरु की कृपा तो जीवन की योजनायें पूरी करने के लिये होती है। ये आपको जीवन का हिस्सा बनाने के लिये है, जीवन का मकसद पूरा करने के लिये है।
🙏🏻 गुरु कृपा का काम करना…
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एक डॉक्टर जब किसी मरीज का इलाज कर रहा होता है तो लगता है कि सब कुछ नियंत्रण के बाहर है , फिर किसी तरह की कृपा मरीज का इलाज करने में मदद कर रही होती है?
किसी दूसरे का जीवन अपने हाथ में ले लेना कोई छोटी बात नहीं है क्योंकि इसका असर आप पर एक खास तरह से पड़ता है। अपने खुद के जीवन के साथ आप थोड़ा बहुत, इधर उधर कर सकते हैं, उसके साथ खेल सकते हैं। पर जब किसी और का जीवन आपके हाथों में हो तो आप थोड़ा भी इधर उधर नहीं कर सकते। आप चाहे डॉक्टर हों या ड्राइवर, आप दूसरों का जीवन अपने हाथ में ले रहे हैं। अगर आप गुरु हैं तो स्थिति और भी ज्यादा खराब हो जाती है। बहुत सारे लोगों का जीवन अपने हाथ में ले लेना अपने सिर पर एक बड़ा बोझ ढोने जैसा है, खास तौर पर तब, जब वे आपके सामने एक खास तरीके से बैठें हों या आपके सामने असहाय अवस्था में सर्जरी टेबल पर पड़े हों।
आयुर्वेद, सिद्ध, एलोपैथी या कुछ और – को अगर आपने अच्छी तरह से देखा, समझा है तो आप जानते हैं कि किसी के इलाज में आपकी भूमिका 50% भी नहीं होती । दुनिया के महानतम डॉक्टरों का भी यही अनुभव है कि जिन्होंने लोगों के साथ अद्भुत काम किया है, वे लोग बहुत सामान्य ढंग से ऐसी भाषा बोलते हैं।
अगर आपको ईश्वर में विश्वास है तो ये बहुत आसान है। आप ऊपर देख कर कह सकते हैं, “हे राम”! या “हे शिव”! या कुछ भी ! अगर मरीज़ मर भी जाये तो भगवान की गोद में ही तो जायेगा, तो ये ठीक ही है। विश्वास करने वालों को सामान्य रूप से कृपा का अनुभव नहीं होता। उन्हें इस पर बस विश्वास होता है। ये बहुत आसान, सुविधाजनक भी है, कुछ और करना ही नहीं है। पर, इन विश्वास को अगर आप नहीं मानते तो आपको समझ में आ जाता है कि चीजें आपके मुताबिक हों, इसमें आपकी भूमिका बहुत कम होती है और तभी आपको कृपा की उपस्थिति की समझ आती है।
🥀 कृपा का सही मतलब क्या है?
वास्तविक समस्या और परेशानी उन लोगों को होती है जिन्हें पता ही नहीं चलता कि वे विश्वास करें या न करें – वे लोग जिनकी बुद्धि दोनों चीज़ों के साथ संघर्ष में होती है! जो कभी विश्वास करता है और कभी नहीं करता – जिसकी बुद्धि को दोनों के साथ परेशानी है। वह व्यक्ति जो कभी तो ईश्वर में, उसके किसी भी रूप में विश्वास करता है, और कभी कभी नहीं भी करता, जो अपने तर्क और अपनी काबिलियत की सीमितताओं के साथ संघर्ष में है, और जो ऐसे आयामों के साथ भी सहज नहीं है जो सामने दिखते न हों, ऐसे व्यक्ति के लिये कृपा की परिस्थिति उसके जीवन में एकदम स्पष्ट होती है। वह बिल्कुल ठीक ठीक समझता है कि जब उसे कोई संकरा पुल पार करना हो तो दूसरे आयाम की मदद के बिना कुछ नहीं हो सकता। सवाल यह है कि कृपा की यह उपस्थिति आपके पास कैसे आये ? क्या यह किसी संयोग से आती है या इसके लिये कोई तरीका है?
आप नहीं जानते कि कोई पेड़ वास्तव में कैसे काम करता है? आपको नहीं पता कि घास का तिनका कैसे बनता है? आपको नहीं मालूम कि इस ब्रह्मांड में कोई भी चीज़ किस तरह से काम कर रही है? तो, यहाँ जो कुछ है वो आपसे थोड़ी ज्यादा बुद्धिमान लगती है। जब आप इतने बुद्ध हैं तो बेहतर होगा कि आप हर चीज़ के सामने झुकें। जब पेड़ को देखें तो झुकें, पहाड़ को देखें तो झुकें। अगर आप घास का तिनका देखें तो भी झुकें।जब आप चलें तो हर चीज़ पर आपमें आश्चर्य और भक्ति का एक खास भाव होना चाहिये। जीवन के दरवाजे खोलने के लिये बस यही होना चाहिये कि आप खुद को बहुत बड़ा न मानें। आप अपने बारे में वह न सोचें जो सही नहीं है। आप अपने बारे में जो कुछ सोचते हैं वो काफी झूठ है क्योंकि अगर हम मूल जीवन की बात करें, तो आप वो कुछ भी नहीं जानते जो ये मिट्टी जानती है। आपका मस्तिष्क वो नहीं कर सकता जो ये मिट्टी कर रही है। तो, जब आपके आसपास इतनी हस्तियाँ हों, तो आपको शांति से, हल्के से चलना चाहिये। अगर आप बस भक्ति के भाव में चलें तो धीरे धीरे आप कृपा की गोद में गिर जायेंगे।
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सूई के छेद से ऊँट गुजर सके इससे भी अत्यधिक मुश्किल बात है गुरुकृपा के बिना ईश्वरकृपा प्राप्त करना ।
सेल्फ अवेकनिंग मिशन
शालिनी साही