प्रभु अपने भक्तों पर अहेतुकी कृपा करते हैं अर्थात् बिना कारण वो दयालु हैं, और भक्तों पर प्रेम और दयावश कृपा करते हैं। उनकी मौज है, जिस पर रीझ जाएं, वही निहाल हो जाता है उनके अलौकिक प्रेम और करुणा से। फिर परमात्मा अगर देना चाहे तो उसके अनंत रास्ते हैं, वो इतना देते हैं हैं कि हमारी सामर्थ्य नहीं ले पाने की। हमारी सोच से ज्यादा वो हमें देते हैं।

प्रभु अपनी दयावश सबसे पहले हमें मानव जीवन देते हैं, जो चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, फिर मनुष्य जन्म देकर कदम–कदम पर हमारे जीवन के लिए सारी व्यवस्थाएं कर रखी हैं परमात्मा ने। जीवन के लिए सारी मूलभूत आवश्यक चीजें हमे परमात्मा फ्री में प्रकृति से लुटाते रहते हैं। और जीवात्मा से परमात्मा बनने के अनन्त अवसर स्वांस स्वांस में दिए जाते हैं। मानव जीवन एक मात्र अवसर है जहां से हम अपने आत्मज्ञान द्वारा मुक्ति पा सकते हैं।

प्रभु के भक्त इस मानव जीवन के अनमोल अवसर को पहचान पाते हैं। उनका जीवन शुरू से संघर्षों से भरा होता है, किंतु हर संघर्ष या चुनौती भक्त के लिए ऊंचाइयों के नवीनतम अवसर लेकर आती है। और भक्त सभी बेड़ियों को पार करता जाता है, यही संघर्ष उसे और मजबूत बनाती है तथा ईश्वर की प्राप्ति की योग्यता प्रदान करती है।

भक्त जितना संघर्षों की आग में तपता जाता है, वह सोना बनकर निखरता जाता है। और प्रभु अभी सदा अपने भक्तों के अंग संग सहाई होते हैं। हर तरह से भक्त की रक्षा करते हैं, उसकी सम्हाल करते हैं क्योंकि भक्त की सारी जिम्मेदारी भगवान स्वयं उठाते हैं। उसे किसी ना किसी तरीके से सही रास्ता दिखाते हैं और भटकने से रोकते हैं।

जब भक्त पर प्रभु प्रसन्न होते हैं तो उसे अपनी सेवा देते हैं , सत्संग, सुमिरन, प्रेम, भक्ति और समर्पण की सौगात देते हैं। यही सबसे बड़ी दौलत है संसार में। गुरु रूप में आकर स्वयं उसका हाथ पकड़ कर उसे भवसागर से पार ले जाते हैं। इस प्रकट रूप में प्रभु अपने भक्तों का कल्याण करते हैं।

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