सच को हमेशा कड़वा माना जाता है, क्योंकि इसमें कोई विकार नहीं मिला होता है। यह अपने शुद्धतम रूप में होता है। जैसे 24 कैरेट का सोना सबसे शुद्ध होता है, उसमे कोई मिलावट नही होती। लेकिन एक ग्राम, दो ग्राम ऐसे मिलावट की जाती है, किसी धातु की, तब उसका कैरेट कम होते जाता है। और शुद्ध सोना बहुत नाजुक होता है, उससे गहने बनाने से उसके आसानी से टूटने का डर बना रहता है। इसलिए गहने बनाने के लिए कुछ अशुद्धि के रूप में दूसरे धातु के साथ मिलावट की जाती है, तभी वह काम आ सकता है। उसमे अशुद्धि से मुजबूती आती है, बस इतना है।

इसी प्रकार जीवन में सत्य को पूरी शुद्धता के साथ व्यावहारिक जीवन में लागू नही किया जा सकता है। इसलिए कुछ मिलावट की जाती है, ताकि लोगों को वह स्वीकार्य हो सके। जैसे किसी बीमार इंसान को आप सीधे नही कह सकते की तुम मरने वाले हो। इसलिए सत्य को कहने के लिए कुछ लाग लपेट की जाती है।

जैसे छोटे बच्चों को दवाई खिलाने के लिए उसमे कड़वी दवाई के उपर मिठास के लिए लेप किया जाता है, तभी बच्चा उसे खा पाता है। लेकिन बच्चा सिर्फ उपर के कवर पर ही मोहित हो जाता है।

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