
मनुष्य जीते जी जैसी प्रवृत्ति रखता है मृत्यु के उपरांत उसकी आत्मा वैसा ही स्थान प्राप्त करती है। जो लोग शिव को अपना आराध्य मानते है वो शिव लोक, जो विष्णु को आराध्य मानते हैं वो विष्णु लोक, जो भगवान श्री कृष्ण की अराधना करते हैं वो गोलोक की यात्रा करते हैं। आत्मा एक निश्चित अवधि तक ही वहां रह पाती है जैसे ही उसके शुभ कर्म खत्म हुए उसे फिर नीचे कर्मों का भोग भोगने भेज दिया जाता है। वहीं दूसरी तरफ एक सच्चा गुरु मुख मृत्यु के बाद सचखंड धाम को प्राप्त होता है। वह परमात्मा में सदा सदा के लिए विलीन हो जाता है। मरने के बाद भी गुरु उनकी आत्मा की सम्हाल करते हैं। उसकी आत्मा सदा सदा के लिए मुक्त हो जाती है वहीं दूसरी तरफ जो लोग संसार के भोगों में,विषय वासनाओं में लिप्त रहते हैं मृत्यु के उपरांत उनकी आत्मा की भी वही गती होती है। वो संसार जो जीते जी अपने अंदर लिए घूमते हैं वो संसार मृत्यु के बाद भी उन्ही में रहता है, वो उनसे बाहर नहीं निकल पाते। मृत्यु के बाद भी वो अपने रिश्तेदारों के आस पास ही घूमते रहते हैं। जीते जी इतना मोह, इतनी इच्छाएं मरने के बाद उन्हें परमात्मा में विलीन होने नहीं देती। आप लोगो ने नर्क जैसी बाते भी सुनी होगी। जो लोग बहुत ही गंदे कर्म करते हैं उनके लिए नर्क जैसी जगह का भी प्रावधान है। उन्हे मृत्यु के बाद दंडित किया जाता है।