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जो कर्म ज्यादा होते हैं उसे बाद में तथा जो कम होते है उसे पहले भोगने को मिलता है। वैसे इसका कोई एक ही पैमाना ना होकर परिस्थिति तथा दैवी कृपा से निर्धारण होते देखा या सुना गया है। यदि अच्छे कर्म ज्यादा हैं तो बुरे कर्मों का फल इसी जन्म में तथा अच्छे का फल अगले जन्म में या इसी जन्म के बाद के दिनों में भोगने को मिलता है।
जिन्होंने पूरी जिंदगी खोटे कर्म किए हैं उन्हें यम के भयानक दूत दिखाई देते हैं। बासी भोजन करना, दक्षिण दिशा में मुंह करके खाना, भोजन के दौरान और बाद में पानी पीना, थाली में ही हाथ धोना, भोजन की नींदा करना, टूटी हुई थाली में भोजन करना आदि ऐसे कई काम है जो आपको गंभीर रोग और शोक में धकेल सकते हैं।
रोग उत्पन्न करने वाले कारकों को कुछ रोग आनुवंशिक कारणों से भी उत्पन्न होते हैं।
मनुष्य के रूप में अच्छे कर्म के अभ्यास के द्वारा हमारे पास हमारी आध्यात्मिक प्रगति की गति को त्वरित करने के अवसर हैं। ज्ञान और स्पष्टता की हमारी कमी के कारण हम नकारात्मक कर्म को जन्म देते हैं। दयाहीनता खराब फल पैदा करती है, जिसे पाप कहते हैं और अच्छे कर्म से मीठे फलों की प्राप्ति होती है, जिसे पुण्य कहते हैं।
कर्मों की सजा भोगने को मिलता है। वैसे इसका कोई एक ही पैमाना ना होकर परिस्थिति
तथा दैवी कृपा से निर्धारण होते देखा या सुना गया है। यदि अच्छे कर्म ज्यादा हैं तो बुरे कर्मों का फल इसी जन्म में तथा अच्छे का फल अगले जन्म में या इसी जन्म के बाद के दिनों में भोगने को मिलता है।
अगर आप हर काम को एक समपर्ण या भेंट की तरह करते हैं तो फिर आपके कर्म बंधन धीरे-धीरे खुलने शुरू हो जाते हैं। जब तक आप कुछ भी न करने की स्थिति तक नहीं पहुँच जाते, तब तक आप चाहे जो कुछ भी करें, उसे अपने भीतर एक समर्पण या भेंट के तौर पर करें। अर्पण की भीतरी स्थति में, आपको कृपा मिलनी शुरू हो जाएगी।
धर्म शास्त्रों के अनुसार जन्म से लेकर 12 वर्ष की आयु तक बालक जो भी कर्म करता है वह पाप नहीं माना जाता है क्योंकि जन्म से लेकर इस आयु तक वह अज्ञान होता है अतः आपसे बहुत बड़ी गलती हुई इसका परिणाम आपको भी भुगतना होगा।
शास्त्रों पुराणों में बताया गया है कि मनुष्य धरती पर रहकर जो भी अच्छे या बुरे कर्म करते हैं उन सभी कर्मों का लेखा-जोखा मृत्यु के बाद होता है और उसके अनुसार सजा और पुनर्जन्म मिलता है। ईश्वर की दृष्टि में जो अच्छे कर्म यानी आपके काम होते हैं उसे पुण्य कहा जाता है और जो बुरे कर्म होते हैं उन्हें पाप कहा जाता है।
पुराणों में कई अच्छे और बुरे कर्मों के बारे में बताया गया है। मनुष्य को अपने पाप कर्मों के कारण मृत्यु के बाद अलग-अलग तरह के पापों के लिए कौन- कौन सी अलग सजाएं दी जाती हैं।
भगवान श्री कृष्ण के दृष्टि में जो सबसे बड़ा पाप है भ्रूण हत्या । महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद जब द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भ में पल रहे बालक परीक्षित पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करके उसकी हत्या कर दी तब भगवान श्री कृष्ण सबसे अधिक क्रोधित हुए थे।
श्री कृष्ण ने उस समय ही यह घोषणा कर दी थी कि अश्वत्थामा का पाप सबसे बड़ा पाप है क्योंकि उसने एक अजन्मे बालक की हत्या की थी। श्री कृष्ण ने इस पाप की सजा स्वयं अश्वत्थामा को दी थी।
श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा के सिर पर लगा चिंतामणि रत्न छीन लिया और शाप दिया कि तुमने जन्म तो देखा है लेकिन मृत्यु को नहीं देख पाओगे यानी जब तक सृष्टि रहेगी तुम धरती पर जीवित रहोगे और कष्ट प्राप्त करोगे।भ्रुण की हत्या करने वाले के लिए सबसे कठोर सजा निर्धारित है और ऐसे व्यक्ति को कई युगों तक इस सजा का दंडभुगतना पड़ता है।
शालिनी साही🙏
सेल्फ अवेकनिंग मिशन