मन चंचल है! क्योंकि वह निरंतर बहुत कुछ देखते सुनते महसूस करते रहता है। उसे टिकाने के लिए बाहर की शोरगुल की दुनिया से जरा शांत-एकांत में, अपने भीतर की दुनिया में ले जाना होगा। उसे वैराग्य उत्पन्न हो, उसे अपने स्वयं का बोध हो ऐसा कुछ करना होगा।
हमारे यहां स्वयं के भीतर जागें हुए एक विरागी संत थे। वे कहते थे अपने मन को शांत करने के लिए, उसे ठहराने के लिए कभी कभी उसे जरा श्मशान भूमि लें जाया करों। नश्वर देह की सत्यता और साथ में अनमोल मनुष्य जीवन का बोध भी उसे कराया करों। उसे सच्चा उपदेश करने वाले सच्चे संत के पास ले जाया करों। ताकि उसे मनुष्य जीवन रुपी सुअवसर, उसका का सिमीत समय और उसका महत्व पता चले।
विपश्यना ध्यान और मेडिटेशन से मन शांत होता है, शुरू शुरू में मन टिकता नहीं, पर कुछ दिनो या कुछ हफ्तों में टिकने लगता है। सदगुरु प्रदत्त मंत्र, परमात्मा का नाम जपने से भी मन शांत होता है, टिकने लगता है।
अपने मन को कहें की, हे मन तेरा उद्देश्य महान लक्ष्य की प्राप्ति हैं, मख्खी जैसा क्षुद्र चीजों में इधर-उधर भटकना नहीं।
अपने मन को कहें की, हे मन मनुष्य जीवन अनमोल है। यह बार-बार नहीं मिलता। जरा इसका सदुपयोग करने के बारे में सोच।
अपने मन से कहें की, हे मन तुम बहादुर हो, तुम नर से नारायण की यात्रा कर सकते हो, करों।
अपने मन से कहों की, हे मन तुम्हारा सोच विचार आचरण सब नारायण जैसा हो, क्षूद्रो जैसा नहीं। आखिर तुम भगवान विष्णु के अंशः जो ठहरे।
अपने मन को कहों ऐसा। ऐसी अफर्मेशन्स दो उसको। कहीं देर ना हो जाएं, मनुष्य जीवन का सीमित समय खतम न हो जाए उसके पहले आंखें खोलो उसकी।
अपने मन को कहें की, हे मन अबतक तुने सबसे प्यार किया, तुने चीजों से प्यार किया, तुने लोगों के जड़ नश्वर शरीरों से प्यार किया। अब जरा स्वयं से प्यार कर। जब स्वयं से प्यार हो जाता है, मन स्थिर हो जाता है, टिक जाता है। तब उसे कुछ पाने और कुछ खोने की चिंता नहीं रहती।
धन्यवाद!