हर इंसान भौतिक सुखों को चाहता है, ऐसा कोई व्यक्ति नही जिसे सांसारिक सुखों की चाह ना हो। क्योंकि संसार में आते ही माया का परदा जीव पर डाल दिया जाता है। और अज्ञानता के वातावरण में वह फंस जाता है। तब उसे सामने संसार ही नजर आता है कि ये रिश्ते हैं, ये कार्य है जो सब करते है, इस प्रकार जीना है, ये करना है क्योंकि सब करते हैं। वह इसी माया में फंसा हुआ जीवन व्यतीत करने लगता है। और संसार में सब मोह, माया, रिश्ते, धन, रूप, पद, पैसा, नाम, शोहरत, यश, कीर्ति, खुशी के पीछे ही भागते अपना जीवन जीते हैं। यही सब पैदा होने के बाद हर बच्चा सीखने लगता है और वह भी भौतिक सुखों के पीछे भागता है।
हालांकि हर सुख एक समय बाद समाप्त हो जाता है और दुख भी, कोई परिस्थिति स्थाई नहीं होती, किंतु जीव अज्ञानता के कारण इस पर ध्यान नहीं देता है और सांसारिक सुखों की अंधी दौड़ में भागता रहता है। वह रोज यह घटते देखता है कि सुख भी स्थाई नहीं है और दुख भी पर मायावश वह इसके लिए जीता और मरता है, जैसे: छोटा बच्चा पानी में बने चांद की परछाई को चांद समझ पकड़ने का प्रयास करता है। यह सब अज्ञानता के कारण होता है। और जिसे भी थोड़ा ज्ञान होता है वह इसके समाधान का प्रयास करता है, और संसारंसे अपने भीतर की ओर मुड़ता है। धीरे–धीरे उसे आत्मज्ञान होने लगता है और वह इस माया से मुक्त हो जाता है। और सत्य का उसे साक्षात्कार हो जाता है, उसकी सारी भागदौड़ समाप्त हो जाती है।
जैसे: रेगिस्तान में दूर से धूप के कारण जल का भ्रम होता है, ठीक वैसे ही संसार जीवों को बहुत आकर्षक लगता है, उसे असत्य संसार और इसके सुख सत्य भसित होते हैं। इसलिए वह इसके पीछे भागता है। और अंत तक हांथ कुछ नही आता। और यदि उसे थोड़ा ज्ञान हो भी जाए तो वह सोचता है संसार छोड़कर और कहां जाएं, क्या करें? क्योंकि वह भीतर की ओर मुड़ना नही जानता कि हमारे भीतर ही यह संसार और सारा ज्ञान, सत्य, परमात्मा समाया हुआ है जब उसे किसी समर्थ सतगुरु की शरण मिलती है, सत्संग मिलता है, तभी वह जागृत हो आत्मज्ञान की ओर बढ़ता है।
सर बिल्कुल सही लिखा है, आपकी कृपा भरा हाथ और मार्गदर्शन मिला है तब से धीरे धीरे अज्ञानता का नाश हो रहा है, आप ही प्रेरणा के स्रोत हैl आप जैसे गुरु
का मेरे जीवन मे आना मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य है, अपनी कृपा दृष्टि सदैव बनाऐ रखियेगा l