सतगुरु ने किया है देखो धरती का श्रृंगार हमको दिया अमूल्य प्रकृति का उपहार कहीं हरियाले पेड़ 🌳🌴कहीं विशाल पहाड़..
कहीं रात के आंचल में हैं तारे हजार।
नदिया की है कल कल कहीं समंदर गहराता ,कहीं रेगिस्तान पे तपता सूरज आ जाता सावन की बूंदों से है मद मस्त नज़ारा तपती धरती पर बाजे वर्षा की झंकार
आओ शपथ लें प्रकृति को ना हानि पहुचायेंगे ना नदियों को मैला करेगें ना ही पेड़ कटवाएंगे जल ही जीवन है हम जल को भी बचाएंगे क्योंकि ये सब है अमूल्य प्रकृति का उपहार।
घर में मनुष्य रहा तो प्रकृति हुई आजाद कुछ समय में ही आया प्रकृति पर निखार सारी प्रकृति झूम झूम के करती हमको प्यार हम भी अपना फर्ज निभाये..
करें प्रकृति से प्यार करें प्रकृति से प्यार ।
प्रकृति हमें बहुत कुछ समझती है, मार्ग वह हमें दिखाती है।
नदी कहती है’ बहो, बहो
जहाँ हो, पड़े न वहाँ रहो।
जहाँ गंतव्य, वहाँ जाओ, पूर्णता जीवन की पाओ।
अगति तो मृत्यु कहाती है।
विश्व गति ही तो जीवन है, शैल कहतें है, शिखर बनो, उठो ऊँचे, तुम खूब तनो ठोस आधार तुम्हारा हो, विशिष्टिकरण सहारा हो रहो तुम सदा उर्ध्वगामी, उर्ध्वता पूर्ण बनाती है।
प्रकृति हमें संदेश देती है। वृक्ष कहते हैं खूब फलो, दान के पथ पर सदा चलो। सभी को दो शीतल छाया, पुण्य है सदा काम आया। विनय से सिद्धि सुशोभित है, अकड़ किसकी टिक पाती है।
प्रकृति हमें कुछ संदेश देती है। यही कहते रवि शशि चमको,
प्राप्त कर उज्ज्वलता दमको अंधेरे से संग्राम करो, न खाली बैठो, काम करो।
काम जो अच्छे कर जाते. याद उनकी रह जाती है। प्रकृति कुछ हमें पाठ पढ़ाती है।
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