“इंसान” जन्म के एक वर्ष के बाद बोलना 🗣️सीख जाता है लेकिन बोलना क्या है ,ये सीखने में पूरा जन्म लग जाता है…
श्रृंगार भूधर वन सघन, सरिता सलिल रस आचमन । मकरंद गंध सुहावनी, डोली उठा झूमें पवन । है स्वर्ग से सुन्दर धरा, अन्तर्निहित अनुपात में।
रखना जरूरी संतुलन, बस ध्यान रख इस बात में। वसुधैव सारा तंत्र है, कल्याण मेरा मंत्र है। लौकिक चराचर युक्ति है, अद्भुत अलौकिक यंत्र है। संयम सहित उपयोग का, जब तक करोगे आचरण । होता रहेगा तब तलक, हर आपदा का परिहरण । मैं हूँ प्रबल ।


मानव की देखो कैसी माया, पर्यावरण को खूब सताया। देश को आगे ले जाने, पेड़ काट उन्हें खूब रुलाया।
देश में अनेक कारखाने खुलवाये, पर नदियों में गंदे जल बहाये। देखो प्रकृति कैसे असंतुलित हो गई, ठंडी में गर्मी और गर्मी में बारिश हो रही।
हुआ बादलों में धुओं का बसेरा, पता नहीं अब कब होगा शुद्ध सवेरा । जंगल नष्ट कर जानवरों को बेघर कर दिए, अपने स्वार्थ में पर्यावरण नष्ट कर दिए ये मानव।
पेड़ काटने एक आदमी आया, धूप है कहकर उसी के छाँव में बैठ गया। पेड़ बचाओ कहते हम थकते नहीं, और एक इंसान को पेड़ काटने से रोकते नहीं।
बातों पर अमल कर, प्रदूषण को दूर भगाएँ । चलो शुद्ध और, स्वस्थ पर्यावरण बनाएँ🙏।
ॐ असतो मा सद्गमय । तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय ॥ ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः ॥
हे प्रभु! मुझे असत्य से सत्य की ओर मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर और मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो…

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