
कर्म का सिद्धांत कहता है कि कर्म अकाट्य है, इसे काटा या बदला नही जा सकता। इसलिए जो कर्म किए जा चुके हैं, वह कभी नही बदला जा सकता। अर्थात् जो कर्म किए जा चुके हैं वह तरकश से निकले तीर की तरह हैं जिसे वापस नही लाया जा सकता। अब वह तीर कहीं ना कहीं जाकर लगेगा और अपना प्रभाव छोड़ेगा, उससे बचा नही जा सकता। उसका फल अब हमे भोगना ही होगा। वह कभी ना कभी प्रारब्ध बनकर सामने आएगा।

इस जन्म में हम जो करने वाले हैं वह तो हमारे हाथ में है, कि प्रारब्ध में होते हुए भी हम वह ना करें या उससे बचने के उपाय किए जा सकते हैं। जैसे: पिछले जन्मों के कर्मो के कारण बहुत गरीबी और दरिद्रता हमारी किस्मत में है, पर वह हमारे पुरुषार्थ पर निर्भर करता है कि हम जी तोड़ मेहनत के द्वारा उसे बदल दें। और मेहनत और कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है, कुछ हद भुगतना पड़ सकता है, पर हम उसे बदल सकते हैं। सही दिशा में और सही तरीके से किया गया प्रयास निष्फल नहीं होता।
इसके अलावा जो पुराने संचित कर्म हैं उनको काटने का बस एक उपाय है कि उसको विनम्रता पूर्वक भोग लिया जाए, और अपनी गलती स्वीकार की जाए। इसके अलावा परमात्मा और गुरु की कृपा से ही पुराने कर्मों को मिटाया जा सकता है। गुरु स्वयं परमात्मा हैं जो साकार रूप में हमारे कल्याण हेतु आते हैं, उनकी सामर्थ्य अनंत हैं, वो ही चाहें तो हमारे समस्त कर्मबन्धन काट सकते हैं। गुरु द्वारा दिए गए परमात्मा के नाम में वह ताकत होती है जो कर्मों के पहाड़ों को ऐसे जला देती है जैसे सुखी घांस को छोटी से चिंगारी जला देती है, इसलिए गुरु की महिमा अपार है।

कर्म जीव का पीछा कभी नही छोड़ते है, फिर इसके लिए जीव को चाहे लाखों जन्म ही क्यों ना लग जाएं। पर ईश्वर की कृपा से जीव को जब ज्ञान होता है तो वह निष्काम कर्मयोग की ओर आगे बढ़ता है, इससे वह कर्म करते हुए भी कर्मबंधन से बच जाता है। या फिर अंतिम मार्ग समर्पण मार्ग जिसमे जीव पूरी तरह परमात्मा के चरणों में दीनता के साथ समर्पित हो जाता है, कि मैं जैसा भी हूं अब आप सम्हालो प्रभु।
कर्म को काटने के अन्य जो तरीके हमारे शास्त्रों, ग्रंथों और संतो ने बताए हैं वह है संसार की सेवा, सत्पात्र को दान–पुण्य, सबके मंगल की भावना से किया गया कोई भी कार्य, अपने पुराने समस्त कर्मों के लिए माफी प्रार्थना, माफी मांगने और माफ कर देने से, सबमें परमात्मा का रूप देखते हुए कर्म करने से, सत्कर्मों के द्वारा पुराने कर्मों के प्रभाव को बहुत हद तक कम किया जा सकता है पर पूरी तरह मिटाया नहीं जा सकता। कर्म का फल तो भगवान राम और कृष्ण को भी भोगना पड़ा था तो हम कैसे कर्म से बच सकते हैं।