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कितना प्यारा “परमहंस” प्यारा मिला। मुझे इतना प्यारा परमहंस परमहंस का प्यारा “आनंदपुर” दरबार मिला ,जिसके चरणों में यह दुनिया झुकती, मुझे वह अनमोल उपहार मिला ।
मुझे इतना सोहणा सतगुरु मिला अंबर ढूंढा ,सागर ढूंढा ,गुरु से बढ़कर कोई नहीं ।
गुरु सा कोई अनमोल नहीं ।
गुरु से बढ़ कर इस दुनिया में कोई दूजा सौगात नहीं ,शायद मेरे अच्छे कर्म थे “सतगुरु” तेरा साथ मिला सतगुरु तेरा प्यार मिला। अपने रंग में रंग डालो किसी और रंग की चाह नहीं ।
“गुरु” का प्यार पाके प्यारे दुनिया की मुझे परवाह नहीं।
बड़भागी मैंने गुरु कृपा से गुरु को पाके रब को भी है पा लिया। तेरे दर्शन के नैन बावरे आंके दर्शन दिया करो नैनो की खिड़की खोल के हर पल मुझसे मिला करो हर एक सांस में हो तेरा सिमरन बीत जाए जीवन मेरा मैं अनजान हूं कुछ भी ना जानू हर घट की तू पीर हरे।
मेरी भी अब फीर हरो मुझे आ के गुरुजी लगा लो गले ,इस शालिनी की लाज रखो कर किरपा मुझे कर स्वीकार करो। मुझे सतगुरु स्वीकार करें…
गुरुजी के नाम की ओढ़ के चदरिया मैं हो गई रे बावरिया जोगन बन गई गुरु जी को कर के मैं चादर जो ओढ़ी । मैं गुरु नाम की चादर उनके ही धुन में चलूंगी दगड़िया ।
मैं बावरिया मेरे प्रभु !मेरे गुरु देव देव एक मेव मे ही सब देव देव मन में उठे मेरे गुरु नाम की लहरिया गुरुजी की मो पर पड़ गई छाया बदल गई मारी यह काया आनंदपुर आनंदपुर की मैं बन गई जोगणिया।
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